शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

बिहार को बहुत मंहगा पड़ेगा नदी जोड़


लगता है कि तटबंध निर्माण की सजा भुगत रहा बिहार अपनी गलतियों से कुछ सीखने को तैयार नहीं है। ताजा परिदृश्य पूर्णतया विरोधाभासी है। नीतीश सरकार ने एक ओर आहर-पाइन की परंपरागत सिंचाई प्रणाली के पुनरुद्धार का एक अच्छा काम हाथ में लिया है, तो दूसरी ओर नदी जोड़ को आगे बढ़ाने का निर्णय कर वह बिगाड़ की राह पर भी चल निकली है। प्रदेश के जलसंसाधन मंत्री का दावा है कि नदी जोड़ की इन परियोजनाओं के जरिए नदी के पानी में अचानक बहाव बढ़ जाने पर सामान्य से अधिक पानी को दूसरी नदी में भेजकर समस्या से निजात पाया जा सकेगा। वह भूल गए है कि तटबंधों को बनाते वक्त भी इंजीनियरों ने हमारे राजनेताओं को इसी तरह आश्वस्त किया था। उसका खामियाजा बिहार आज तक भुगत रहा है। जैसे-जैसे तटबंधों की लंबाई बढ़ी, वैसे-वैसे बिहार में बाढ़ का क्षेत्र और उससे होने वाली बर्बादी भी बढ़ती गई। बर्बादी के इस दौर ने बिहार में सिंचाई की शानदार आहर-पइन प्रणाली का मजबूत तंत्र भी ध्वस्त किया। परिणाम हम सभी ने देखे। आगे चलकर जलजमाव, रिसाव, बंजर भूमि, कर्ज, मंहगी सिंचाई और घटती उत्पादकता के रूप में नदी जोड़ का खामियाजा भी बिहार भुगतेगा।


आगे बढ़ाये चार प्रस्ताव


उल्लेखनीय है कि राज्य ने निर्णय ले लिया है। राज्य के जलसंसाधन विभाग में इसके लिए विशेषज्ञों की एक टीम भी गठित कर दी गई है। टीम ने प्रथम चरण में 790 करोड़ की लागत के चार परियोजनाओं पर काम करने का प्रस्ताव किया है। राज्य के जलसंसाधन मंत्री ने होशियारी दिखाते हुए राष्ट्रपति चुनाव से पहले केंद्रीय जलसंसाधन मंत्री से इन पर बात भी कर ली है। फिलहाल इन प्रस्तावों को लेकर बिहार सरकार को योजना आयोग की मंजूरी का इंतजार है। इन चार प्रस्तावों के नाम, जल स्थानान्तरण क्षमता और लागत निम्नानुसार है: 

1. बूढ़ी गंडक-नून-बाया-गंगा लिंक
300 क्यूमेक और 407.33 करोड़।

2. कोहरा-चंद्रावत लिंक
( बूढ़ी गंडक का पानी गंडक में) 
80 क्यूमेक और 168.86 करोड़।

3. बागमती-बूढ़ी गंडक लिंक
( बागमती-बूढ़ी गंडक का पानी बेलवाधार में) 
500 क्यूमेक और 125.96 करोड़।

4. कोसी-गंगा लिंक
88.93 करोड़


सेम बढ़ेगा-उत्पादकता घटेगी


समझने की जरूरत है कि नदी जोड़ के नुकसान क्या हैं? बात एकदम सीधी सी है; पर न मालूम क्यों हमारे कर्णधारों को समझ नहीं आ रही। हम सभी जानते हैं कि नदी जोड़ परियोजना नहरों पर आधारित है। बिहार का गंगा घाटी क्षेत्र का ढाल सपाट है। नहरें वर्षा के प्रवाह के मार्ग में रोड़ अटकायेंगी ही। इससे बड़े पैमाने पर सेम की समस्या सामने आयेगी। सेम यानी जलजमाव। सेम से जमीनें बंजर होंगी और उत्पादकता घटेगी। इसके अलावा नहरों में स्रोत से खेत तक पहुंचने में 50 से 70 फीसदी तक होने वाले रिसाव के आंकड़े पानी की बर्बादी बढ़ायेंगे। समस्या को बद से बदतर बनायेंगे। गंगा घाटी की बलुआही मिट्टी इस काम को और आसान बनायेगी। बिहार के नदी व नहरी क्षेत्र के अनुभवों से इसे सहज ही समझा जा सकता है।


नहर टूटने के खतरे


बिहार में नहरों और तटबंधों के टूटने की घटनायें आम हैं। तिरहुत, सारण, सोन, पूर्वी कोसी। बरसात में बाढ़ आयेगी ही और हर साल नहरें टूटेंगी ही। नहरों का जितना जाल फैलेगा, समस्या उतनी विकराल होगी।


बहुत मंहगा पड़ेगा नदी जोड़


बाढ़ में अतिरिक्त पानी को लेकर समझने की बात यह है कि उत्तर बिहार से होकर जितना पानी गुजरता है, उसमें मात्र 19 प्रतिशत ही स्थानीय बारिश का परिणाम होता है। शेष 81 प्रतिशत भारत के दूसरे राज्यों तथा नेपाल से आता है। गंगा में बहने वाले कुल पानी का मात्र तीन प्रतिशत ही बिहार में बरसी बारिश का होता है। अतः ब्रह्मपुत्र-गंगा घाटी क्षेत्र में नदी जोड़ का मतलब है नेपाल में बांध। उसके बगैर पानी की मात्रा नियंत्रित नहीं की जा सकती। बांधों को लेकर दूसरे सौ बवाल है, सो अलग; इधर नेपाल ने प्रस्तावित बांधों से होने वाली सिंचाई से धनवसूली की मंशा पहले ही जाहिर कर दी है। लालू यादव ने मई, 2003 में कहा ही था- “पानी हमरा पेट्रोल है।” इस नजरिए से बहुत मंहगी पड़ेगी नदी जोड़ के रास्ते आई सिंचाई। यूं भी नदी जोड़ की प्रस्तावित लागत आगे और बढ़ने ही वाली है। इसके क्रियान्वयन में निजी कंपनियों का प्रवेश भी होगा ही। वे आये दिन किसानों की जेब खाली कराने से कभी नहीं चूकेंगी। सस्ता नहीं सौदा नदी जोड़ का।


बाढ़ के साथ जीने का उपायों की जरूरत

बिहार की बाढ़ को लेकर चर्चा कोई पहली बार नहीं है। यह कई बार कहा जा चुका है कि बाढ़ को पूरी तरह नियंत्रित करना न संभव है और न किया जाना चाहिए। बाढ़ के अपने फायदे हैं और अपने नुकसान। जरूरत है, तो सिर्फ बाढ़ प्रवाह की तीव्रता को कम करने वाले उपायों की। नदियों में बढ़ती गाद को नियंत्रित करने की। तटबंधो पर पुनर्विचार करने की। बिहार की बाढ़ का ज्यादातर पानी नेपाल की देन है। मध्यमार्गी होकर उसका रास्ता नेपाल से बात करके ही निकाला जा सकता है। लेकिन हमारी नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में जलसंचयन ढांचे व सघन वनों की समृद्धि तथा जलप्रवाह मार्ग को बाधामुक्त करने जैसे उपायों से कम से कम वर्षाजल के जरिए आने वाले अतिरिक्त जल को धरती के पेट में बैठाया ही जा सकता है। 

साथ ही जरूरत है कि बाढ़ क्षेत्रों में ऐसे उपाय करने की, ताकि लोग बाढ़ के साथ जी सकें। बाढ़ क्षेत्रों के लिए मार्च अंत में बोकर बारिश आते-आते काट ली जाने वाली धान की किस्में उपलब्ध हैं। खरीफ फसलों पर और काम करने की जरूरत है। बाढ़ क्षेत्रों में रबी के भी अच्छे प्रयोग हुए हैं। उन्हें लोगों तक पहुंचाने के लिए वित्तीय प्रावधान, ईमानदारी व इच्छाशक्ति चाहिए। बाढ़रोधी घर, पेयजल के लिए ऊंचे हैंडपम्प, शौच-स्वच्छता का समुचित प्रबंध तथा पशुओं के लिए चारा-औषधियां। छोटे बच्चों के इलाज का खास इंतजाम व एहतियात की। जरूरत है कि बाढ़ के समय के साथ-साथ हम अपने कामकाज के वार्षिक कैलेंडर को बदलें। डाकघर-दवाखाना-बैंक-एटीएम-बाजार आदि जैसी रोजमर्रा की जरूरतों की मोबाइल व्यवस्था करें। सुंदरवन में यूनाइटेड बैंक नौका शाखा के जरिए अपनी सेवायें देता है।

आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है। सोच बदले, तो दिशा बदले। बिहार में यदि सचमुच सुशासन है, तो वह इसी का परिणाम है। जरूरत है बिहार के इंजीनियर मुख्यमंत्री को बिहार की बाढ़ पर ठेकेदार प्रस्तावित परियोजनाओं की सोच से उबरने की। क्या वह उबरेंगे? फिलहाल प्रस्तावित चार परियोजनाओं का संकेत ठीक इसके विपरीत है। आप क्या सोचते हैं? अपनी आवाज बिहार सरकार तक पहुंचायें। हमे इंतजार रहेगा। हो सकता है कि सरकार चेत जाये तथा बिहार एक और नुकसानदेह परियोजना का खामियाजा भुगतने से बच जाये।

मंगलवार, 7 अगस्त 2012

जनता की पंचायत

मीरा सहनी और खुशबू कुमारी को बलात्काकरियों ने मार डाला


9 अगस्‍त 2012 – 11 बजे दिन से गायघाट प्रखंड मुख्‍यालय के निकट

भाइयों एवं बहनों,
19 मई 2012 की रात में धनौर गांव, थाना कटरा, जिला मुजफ्फरपुर की स्‍वयं सहायता समूह की संयोजिका मीरा सहनी को फोन पर बताया गया कि उसका बेटा, जो यज्ञ देखने गया था, एक बगीचे में बेहोश पड़ा है। वह दौड़ी हुई सुनसान बगीचे की ओर पहुंची। पहले से घात लगाये उसी गांव के दुष्‍कर्मी उसे पकड़कर चौर में ले गये। जहां लगभग एक दर्जन सफेदपोश लफंगों ने उसके साथ जबर्दस्‍ती की और विरोध करने पर मार-मार कर बेहोश कर दिया। उसके पूरे शरीर को दांतों से नोचा-खसोटा गया। मरणासन्‍न हालत में उसे गांव में लाकर फेंकने ही वाले थे कि लोगों ने देख लिया। हल्‍ला होने पर दुष्‍कर्मी भाग गये।
   गांव वालों ने उसे कटरा अस्‍पताल पहुंचाया। थोड़ी देर बाद उसे रेफर करके अस्‍पताल के एम्‍बुलेंस से श्रीकृष्‍ण मेडिकल कॉलेज, मुजफ्फरपुर भेज दिया गया। कटरा अस्‍पताल के डॉ. अनिल सिंह ने पुलिस को सूचना देना तक उचित नहीं समझा जो कि उनकी कानूनी जिम्‍मेवारी थी। मुजफ्फरपुर मेडिकल कॉलेज में मीरा 20 मई 2012 को 11 बजे दिन तक थी। वहां से उसे रेफर करके पटना मेडिकल कॉलेज भेज दिया गया। दुष्‍कर्मियों के समर्थकों ने डॉक्‍टरों एवं अधिकारियों को भी मिला लिया था, इसलिए उन्‍होंने पुलिस को सूचित नहीं करवाया। 20 मई की शाम 4 बजे मीरा की बहन और बहनोई ने उसे पटना मेडिकल कॉलेज में भर्ती करवाया। वहां 23 मई की रात 8.30 बजे उसकी मृत्‍यु हो गई। बलात्‍कारियों- हत्‍यारों के हाथ इतने लंबे हैं कि पटना मेडिकल कॉलेज के अधिकारियों ने भी पुलिस को सूचित नहीं किया और बिना पोस्‍टमार्टम के लाश को अस्‍पताल से बाहर करने की कोशिश करने लगे। मीरा के परिजनों के विरोध के कारण 24 मई की सुबह तक लाश वहीं पर पड़ी रही। इस बीच मीरा का पति कलकत्‍ता से आ गया था। उसने कुछ सामाजिक व राजनीतिक कार्यकर्ताओं को फोन करके मदद की गुहार लगाई। पत्रकारों, महिला संगठनों को पता चला। अंतत: सेवानिवृत्‍त डीजीपी रामचन्‍द्र खान के हस्‍तक्षेप के बाद पटना के पीरबहोर थाना के थानाध्‍यक्ष ने पीएमसीएच पहुंच कर एफआईआर दर्ज किया। उसके बाद पोस्‍टमार्टम हो सका।
   अभी वेजाइनल विसरा की फॉरेंसिक जांच की रिपोर्ट आई भी नहीं, लेकिन अखबारों में छपवा दिया गया कि मीरा के साथ बलात्‍कार हुआ ही नहीं था। धनौर गांव के सभी जातियों के अधिकांश लोग बताते हैं कि मीरा के साथ अत्‍याचार हुआ है और इस घटना में लिप्‍त सफेदपोश अपराधी अपनी जाति की गरीब लड़कियों के साथ भी छेड़खानी और जबर्दस्‍ती करने से बाज नहीं आते। घटना के लगभग ढाई महीने से ज्‍यादा बीतने के बावजूद इस कांड में लिप्‍त अपराधी छुट्टा घूम रहे हैं। उनको अपने राजनीतिक आकाओं का संरक्षण प्राप्‍त है। मीरा के पति छोटे सहनी को धन का प्रलोभन और धमकी देकर चुप कराने की असफल कोशिश हुई है।
  यही कारण है कि इलाके भर के दुष्‍कर्मियों का मन बढ़ गया। 12 जुलाई 2012 की रात 7-8 बजे कोपी गांव की 9वीं क्‍लास की 14 वर्षीय छात्रा खुशबू कुमार (पिता रविंद्र सिंह) शौच के लिए नदी किनारे गई थी। वहीं दुष्‍कर्मियों ने उसे दबोच लिया। उसके साथ दुष्‍कर्म किया और बात छिपाने के लिए उसे भी जान से मार डाला।
  मीरा सहनी बलात्‍कार हत्‍याकांड के अपराधी के भतीजे खुशबू के बलात्‍कार-हत्‍या में शामिल थे। ये कुकर्मी खुशबू की ही जाति के थे। पुलिस प्रशासन की ढिलाई के परिणामस्‍वरूप इस केस में एक कुकर्मी की गिरफ्तारी तो हुई लेकिन अन्‍य सभी छुट्टा घूम रहे हैं। 26 जुलाई 2012 की रात में कुकर्मियों ने इस मामले के गवाहों को बुरी तरह पीटा।
   इस इलाके में इस प्रकार की घटनाएं घटती रहती हैं। दुष्‍कर्मी गरीब और कमजोर लड़कियों और महिलाओं के साथ बदमाशी करने से भी बाज नहीं आते।
   हम और आप कब तक चुप बैठे रहेंगे। आइए इस प्रवृत्ति का विरोध कीजिए। हम सब मिलकर पुलिस, प्रशासन और सरकार पर दबाव डालें कि बलात्‍कारियों और हत्‍यारों पर सख्‍त कारवाई की जाए। हमारा समाज जगे और महिलाओं के साथ सम्‍मान व बाराबरी के व्‍यवहार की संस्‍कृति मजबूत हो। समाज की कोई लड़की या औरत असुरक्षित न रहे।
  क्‍या आप इस अत्‍याचार पर मौन साधे रहेंगे। आइए इस जुल्‍म का विरोध कीजिए। सभी जनपक्षी संगठनों, पार्टियों तथा संवेदनशील स्‍त्री-पुरुषों से अपील है कि इस सत्‍याग्रह में शामिल होकर अपना फर्ज निभाइए। गांव से आने वाले सभी साथी अपना भोजन – चूड़ा, सत्‍तू, रोटी साथ लाएं तथा अपने खर्च से आएं।
बाहर से आने वाले अतिथि -
रामचंद्र खान (पूर्व डीजीपी), अनिल प्रकाश, डॉ. कुमार गणेश, डॉ. इन्‍दु भारती, शाहिना परवीन, निभा सिन्‍हा – 9835450544, अख्‍तरी बेगम – 9430559191, कंचन बाला, अशर्फी सदा, अरविंद निषाद, सुजीत कुमार वर्मा, अशोक क्रांति (सभी पटना से), गौतम (भागलपुर से)

निवेदक
दिनेश कुमार - 9631670544, अजय कुमार, रामू, सुनील सिंह (गाय घाट), छोटे सहनीख्‍ विमल सहनी, किरण सिन्‍हा, लक्ष्‍मी, पार्वती, रिंकू, खुशबू, बेबी, अजित चौधरी, रॉबिन रंगकर्मी, जितेंद्र चौधरी, अनिल ि‍द्वेदी -9135182766, डॉ. भूषण ठाकुर, रामपुकार सहनी, रामबाबू, आनंद पटेल – 9939898304, डॉ. हेमनारायण विश्‍वकर्मा, सुनील कुमार, राजेश्‍वर साह।

महिला संघर्ष मोर्चा, अपराजिता (महिला जनप्रतिनिधि संगठन), वामा, जनमंच

बुधवार, 23 मई 2012

तटबंध जिसने खेतों की उपज छीन ली

बागमती नदी की जलधारा को बांधने की कोशिश ने खुशहाल आबादी को उजाड़ दिया

- अनिल प्रकाश 

Published in Hindustan News Paper 
On 23-05-2012 (Editorial Page no- 8)
बिहार स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी और मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेज ने मिलकर आईआईटी, कानपुर के दो प्रोफेसर विकास रामाशय और राजीव सिन्हा से बाढ़ पर एक रिपोर्ट बनवाई है। रिपोर्ट का कहना है कि इंजीनियरों व वैज्ञानिकों के तमाम प्रयासों के बावजूद हर बार नदियों के तटबंध टूट जाते हैं और नदियां अपनी धारा बदलने लगती हैं। हर साल भारी धनराशि खर्च की जाती है, लेकिन अपेक्षित परिणाम नहीं आता। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अनेक मामलों में बाढ़ नियंत्रण के इंजीनियरिंग समाधान न केवल अस्थायी साबित हुए हैं, बल्कि इनसे सुरक्षा की झूठी आशा पैदा होती है। लोग निश्चिंत हो जाते हैं और जान-माल की भारी क्षति होती है।

उत्तर बिहार की लगभग सभी नदियों का उद्गम नेपाल का हिमालय है। हिमालय आज भी ऊपर उठ रहा है, जिसके कारण हिमालय क्षेत्र में हर साल लगभग एक हजार छोटे-बड़े भूकंप के झटके आते रहते हैं। इससे पैदा होने वाले भूस्खलन से निकली मिट्टी-बालू बरसात के समय गाद के रूप में भारी मात्र में आती है। बागमती और कमला नदियों में आने वाली गाद अत्यधिक उपजाऊ होती है। इसलिए इस इलाके में बाढ़ को लोग वरदान मानते थे। कहावत है- बाढ़े जीली, सुखाड़े मरली।  बाढ़ धीरे-धीरे आती थी और खेतों में उपजाऊ  मिट्टी बिछा जाती थी। खेत को जोते बिना ही किसान बीज बिखेर देते थे। इतनी फसल होती थी कि लोगों को परदेस जाकर कमाने की जरूरत नहीं पड़ती थी। पर 1954 के बाद, जब बाढ़ नियंत्रण के नाम पर 12 किलोमीटर चौड़ाई में बहने वाली बागमती को तीन किलोमीटर की चौड़ाई में तटबंधों से बांधा जाने लगा, तो मुसीबतें बढ़ने लगीं। लोग उजड़ गए। पुनर्वास का कोई इंतजाम नहीं हुआ। तटबंध के अंदर के खेत बालू से भर गए।
सीतामढ़ी, शिवहर, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, दरभंगा, सहरसा, खगड़िया जिलों से गुजरने वाली बागमती नदी और उसकी सहायक नदियां लाल बकेया, लखनदेई, मनुषमारा और अधवारा समूह की सैकड़ों जलधाराएं तटबंध निमार्ण के पूर्व उन्मुक्त बहती थीं। पर जिन-जिन इलाकों में तटबंध बन गए हैं, वहां जल निकासी का मार्ग बंद  है। जल-जमाव की समस्या पैदा हो गई है। तटबंध के अंदर का हिस्सा काफी ऊंचा हो गया है और बाहरी हिस्सा नीचा रह गया, इसलिए जल निकास का उपाय संभव नहीं है।
वर्ल्ड कमीशन ऑन डैम्स और विश्व बैंक द्वारा गठित विशेषज्ञ समितियों ने भी बांध तथा तटबंधों को अवैज्ञानिक तथा पर्यावरण के लिए घातक मानते हुए इनकी डी-कमीशनिंग की सिफारिश की है। गाद की मात्र को देखते हुए सभी ने इसे गलत ठहराया है। बागमती नदी के जिन इलाकों में अभी तक तटबंध नहीं बने हैं, वहां लोग इसके निर्माण का विरोध कर रहे हैं। लेकिन जिन्होंने विशेषज्ञों की राय पर ध्यान नहीं दिया, वे इन आंदोलनों की बात आसानी से कहां मानेंगे?


शनिवार, 12 मई 2012

बागमती की व्यथा कथा


बागमती पर बोलते हुए अनिल प्रकाश 


आज दिनांक 12 मई 2012 को सेडेड (साउथ एसियन डायलाग आन इक्लाजिकल डेमोक्रेसी) के दिल्ली  दफ्तर में बिहार के अनिल प्रकाश ने ‘बागमती की व्यथा एवं आक्रोश कथा’’ पर बिहार में चल रहे जन आंदोलन बागमती बचाओ अभियान के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि ‘बागमती  व्यथा कथा’ अब आक्रोश गाथा में दबदिल हो गई है। बागमती पर  बन रहे तटबंध के कारण इन क्षेत्रों के लोगों में  रोष व्याप्त हो गया है। हालांकि अभी बिहार सरकार की तरफ से दमनांत्मक कार्यवाही नहीं हुई है, लेकिन  आंदोलनकारी तटबंध नहीं बनाने की मांग पर अडिग हैं और बने हुए तटबंधों को सरकार द्वारा तोड़े जाने के लिए प्रतिबध है, इसलिए लोगों को चैकन्ना रहने को कहा गया। श्री प्रकाश ने कहा कि ‘हम लड़ेंगे, हम जीतेंगे’  

प्रेस विज्ञप्ति


बिहार शोध संवाद/बागमती बचाओ अभियान  

मो-09304549662, ईमेल-anilprakashganga@gmail.com

12.05.2012 कैम्प-दिल्ली


प्रकाशनार्थ 

बागमती बचाओ अभियान के संयोजक महेश्वर प्रसाद यादव को ठेकेदारों के अपराधी शूटर द्वारा फोन पर दी गई धमकी से तटबंध रोको अभियान कमजोर नहीं पड़ेगा बल्कि सत्याग्रही जनता का संघर्ष और तीव्र तथा व्यापक हो जायेगा। हमारे जुझारू साथी हर प्रकार की कुर्बानी देने के लिये तैयार हैं। किसी भी कीमत पर बागमती नदी पर विनाशकारी तटबंध का निर्माण होने नहीं दिया जाएगा। 

ऐसे तत्व धमकी देने या हमला करने की प्रवृति को छोड़ दें अन्यथा जनता का गुस्सा उन्हें कहीं का नहीं छोड़ेगा। संघर्षशील जनता से हमारी अपील है कि संयम से काम लें, लेकिन अपराधी ठेकेदारों एवं उनके दलालों का सामाजिक बहिष्कार करें। 

पुलिस धमकी देने वाले शूटर को तथा अपराधी ठेकेदार को तत्काल गिरफ़तार करे। जनता के धैर्य की परीक्षा न ले। 


अनिल प्रकाश 


गुरुवार, 10 मई 2012

तटबंध का खेल : बांध टूटने की जांच पूरी नहीं, फिर बन रहे नये तटबंध

संवाददाता▪पटना, प्रभात खबर, 10 May 20012, पटना संस्करण

तटबंधों की मरम्मत पर पिछले 22 वर्षों में 2,752 करोड़ रुपये खर्च हुए, लेकिन बाढ. की विभीषिका कम नहीं हुई. 1980 से 2008 के बीच (28 वर्षों में) बाढ. ने 6,444 लोगों की जान ली. कोसी के कुसहा बांध में टूटान को लोग अब तक नहीं भूले हैं. 

2008 में कुसहा बांध टूटने के कारण करीब 30 लाख की आबादी प्रभावित हुई थी. कुसहा बांध टूटने के लिए कौन जिम्मेवार है, यह तय होना अभी बाकी है. जांच के लिए गठित न्यायिक आयोग ने अब तक अपनी रिपोर्ट नहीं दी है.

बनी हुई है परिपाटी


तटबंधों की मरम्मत पर हर साल करोड़ों खर्च और फिर अगले साल उसी तटबंध की मरम्मत की परिपाटी पिछले कई वर्षों से जारी है. राज्य सरकार अभी और नये तटबंध बनाने योजना पर काम कर रही है. सूबे में अभी 3,649 किमी तटबंध है. अगले पांच साल में 1,676 किलोमीटर और तटबंध बनाने की योजना है. विभाग का दावा है कि इससे लगभग 26.86 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को बाढ. से सुरक्षित रखा जायेगा.



चालू वित्तीय वर्ष 2012-13 में विभाग ने 406 किलोमीटर तटबंध बनाया जायेगा.

कब रुकेगा तटबंध मरम्मत का ‘खेल’ ?

संजयपटना, प्रभात खबर, 09 मई , पटना संस्करण 

Published in Prabhat Khabar on 09th May 2012
तटबंधों की मरम्मत पर सरकारी खजाने से हर साल अच्छी-खासी रकम खर्च होती रही है. पिछले 22 वर्षों में 2752.63 करोड़ रुपये खर्च हुए और इसी अवधि में तटबंध टूटने की 268 घटनाएं हुईं. इस साल तटबंधों की मरम्मत के नाम पर 702.38 करोड़ रुपये खर्च होनेवाले हैं. यह अब तक की सबसे बड़ी रकम है. लेकिनउत्तर और पूर्व बिहार के लोग बाढ. से बचाव को लेकर आश्‍वस्त नहीं हैं. उनका सवाल है कि आखिर बाढ. से मुक्ति कब मिलेगी?


हर साल करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद तटबंधों का टूटना जारी है. 2006 से 2012 तक (एनडीए शासनकाल में) तटबंध की मरम्मत के नाम पर 1791.78 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं. तटबंध मरम्मत में अगर बाढ. प्रबंधन के तहत योजना का चयन होतो बिहार को केंद्र सरकार से 75 फीसदी राशि मिल जाती है. राज्य योजना से चयनित योजनाओं में बिहार सरकार को पूरा पैसा खुद खर्च करना पड़ता है. 1987 से 2011 तक सूबे की नदियाें पर बने तटबंध 371 बार टूट चुके हैं. इसमें 18 अगस्त, 2008 में कोसी नदी के कुसहा (भारत-नेपाल सीमा पर स्थित) तटबंध का टूटना भी शामिल हैजिसमें पांच जिलों की 30 लाख आबादी पीड़ित हुई थी. इसके बावजूद राज्य सरकार ने इसका स्थायी समाधान निकालने के बजाय तटबंधों की मरम्मत पर ही जोर दे रही है. कई जिलों का हाल यह है कि वहां हर साल टूटान होता है और काम करने वाली एजेंसी भी वही रहती है. इस साल अधवारा समूह की नदियों और नेपाली भू-भाग में स्थित कोसी तटबंध की मरम्मत के लिए पहली बार बिहार सरकार को सीधे राशि मिली है. 



हर साल टूटते हैं स्पर व तटबंध : भागलपुर में विक्रमशिला के डाउन स्ट्रीम में इस्माइलपुर से बिंदटोली के बीच बने नौ स्पर (नदी की धार से तटबंध को सुरक्षित रखने के लिए बननेवाला लंबा बांध) पिछले दो वर्षों से क्षतिग्रस्त होते रहे हैं. पिछले वर्ष स्पर टूटने पर आध दर्जन इंजीनियरों को निलंबित और एजेंसी को डिफॉल्टर घोषित किया गया था. इसी तरह पूर्वी चंपारण के कोयरपट्टी व गोपालगंज जिले के पटहारा छरकी पर बना तटबंध भी साल-दो साल के अंतराल पर टूट जाता है. 



शनिवार, 5 मई 2012

सरकार झुकी, वार्ता के लिए बुलाया

बागमती आन्दोलन  के अनिल प्रकाश  को जल  संसाधन  मंत्री विजय  कुमार चौधरी ने 5 अप्रैल  को फोन  कर वार्ता के लिए पटना बुलाया है. बागमती पर बन  रहे बाँध व गंडक  परियोजना के मुद्दों पर वार्ता के लिए 6 अप्रैल को एक प्रतिनिधिमंडल पटना जा रहा है, जिसमें अनिल प्रकाश, पूर्व डीजीपी रामचंद्र खान, नदी विशेषज्ञ रंजीव, वीरेंद्र राय, डॉ. कुमार गणेश और डॉ. हरेन्द्र कुमार शामिल  हैं. मंत्री ने भरोसा दिलाया है क़ि सरकार इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाएगी. 
सरकार बनाये एक्सपर्ट कमेटी: आन्दोलनकारियों ने सरकार से मांग की है कि बागमती पर बाँध का निर्माण कितना वैज्ञानिक है इसका पता लगाने के लिए एक एक्सपर्ट कमिटी का गठन करें ताकि सच्चाई सामने आ सके.
आन्दोलनकारियों का प्रस्ताव: इस कमिटी में बागमती आन्दोलन की ओर से भी चार एक्सपर्ट को शामिल किया जाये, जिनमें वैज्ञानिक डॉ. मानस बिहारी वर्मा, नदी विशेषज्ञ डीके मिश्रा, आईआईटी, कानपुर के डॉ. राजीव कुमार, कृषि  वैज्ञानिक डॉ. गोपालजी त्रिवेदी शामिल होंगे.     

सफलता की ओर बागमती आन्दोलन

मुज़फ्फरपुर: बिहार शोध  संवाद  और बागमती बचाओ  अभियान  की अगुआई में चल  रहा  बागमती आन्दोलन  सफलता की ओर बढ़ रहा  है. गाँव-गाँव में सभाएं हो रही हैं। बाँध निर्माण में लगे ट्रैक्टरों को जगह-जगह रोका जा रहा है. हस्ताक्षर अभियान में तेजी आ रही है. अब तक एक हजार से ज्यादा लोग सत्याग्रही प्रपत्र पर हस्ताक्षर कर जेल जाने का संकल्प ले चुके हैं. लोगों का कहना है कि यह आन्दोलन तबतक जारी रहेगा, जब तक कि सरकार बाँध निर्माण को वैज्ञानिक तरीके से स्थगित करने  की सार्वजनिक घोषणा नहीं करती है. बागमती आन्दोलन को धार देने में दिन-रात जुटे सामाजिक कार्यकर्ता व पर्यावरणविद अनिल प्रकाश ने कहा कि हमने सरकार से मांग की है कि तत्काल बाँध का निर्माण वैज्ञानिक तरीके से रोका जाये, नहीं तो बागमती के हजारों लोग फोरलेन जाम करने पर मजबूर होंगे. 

इन जगहों पर रोके गए ट्रैक्टर : 
24 अप्रैल 2012 : गायघाट प्रखंड के कल्याणी में सत्याग्रही महिलाओं ने करीब 40 ट्रैक्टरों को रोक लिया, जो मिटटी से लदे थे. 5 ट्रैक्टरों को जब्त कर 25 अप्रैल को छोड़ा गया।
26  अप्रैल 1012 :  कटरा प्रखंड के भवानीपुर गाँव में भी 30-35 ट्रैक्टरों को आन्दोलनकारियों ने काम करने से रोक दिया.
28 अप्रैल 2012 : गायघाट के पिरौंछा, मिश्रौली व केवटसा गाँव में भी ट्रैक्टरों को रोका गया.
30 अप्रैल 2012 : मिश्रौली में 5 ट्रैक्टरों को जब्त किया गया. बाद में इस शर्त पर छोड़ा गया कि वे फिर काम पर नहीं लगेंगे.
1 मई 2012 : नवादा में भी ट्रैक्टरों को रोका गया.
3 मई 2012 : कल्याणी में 5 ट्रैक्टरों को जब्त किया गया. बाद में छोड़ा गया. गंगिया में काम को रोका गया.

विश्व बैंक का खेल  हो बंद : 
आन्दोलन में लगे अनिल प्रकाश के अलावे महेश्वर प्रसाद यादव, वीरेंद्र राय, डॉ. हरेन्द्र कुमार, डॉ. कुमार गणेश समेत सैकड़ों आन्दोलनकारियों ने एक स्वर में सरकार से कहा है कि बाँध निर्माण में शासन व विश्व बैंक के बीच हो रहे खेल को बंद किया जाये. यह खेल बागमती की जनता भी बखूबी जान रही है.

समर्थन समिति का गठन : 2 मई को पटना में बिहार शोध संवाद की एक बैठक रामचंद्र खान की अध्यक्षता में हुई,इसमें श्री खान की अगुवाई में एक समर्थन समिति का गठन किया गया. बैठक में सुनीता त्रिपाठी, रंजीव आदि मौजूद थे.      

बुधवार, 25 अप्रैल 2012

बांध के खिलाफ बगावत की मशाल जल उठी

-- आंदोलनकारियों ने ट्रैक्टरों को काम करने से रोका 
-- 25 अप्रैल से अनिल प्रकाश गांव में ही करेंगे कैंप 
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गायघाट : प्रखंड के कल्याणी गाँव में  24 अप्रैल की सुबह एक अलग ही नजारा था. एक-एक घर से बच्चे, बूढ़े, औरत-मर्द आन्दोलन की मशाल लेकर चल पड़े बांध निर्माण को रोकने. सबकी आँखों में दहक रही थी आक्रोश की ज्वाला. बिहार सरकार की नीतियों के खिलाफ लोग उबल रहे थे. हजारों की संख्या में लोग बागमती बांध के निर्माण के लिए पहुंचे ट्रैक्टरों को जब्त कर लिया और काम रोक दिया. आन्दोलनकारियों ने ट्रैक्टर चालकों को खाना खिलाकर गाँव में रोके रखा. बागमती का आन्दोलन पूरी तरफ अहिंसक और शांतिपूर्ण चल रहा है. 



एक लाख लोगों का विरोध संदेश पहुंचेगा सरकार के पास

-- बेनीबाद से हस्ताक्षर अभियान का आगाज
-- जेल जायेंगे, लाठी खायेंगे, पर बांध बनने नहीं देंगे  : बागमती की जनता  
गायघाट (मुजफ्फरपुर)  : 24 अप्रैल को बेनीबाद, बंदरा स्थित खादी भंडार में बागमती इलाके के हज़ारों पीड़ितों की मौजूदगी में बांध निर्माण के विरोध में हस्ताक्षर अभियान की शुरुआत की गयी. सैकड़ों लोगों ने हस्ताक्षर कर जेल जाने, लाठी खाने का संकल्प लिया. जानकारी हो कि बिहार शोध संवाद के नेतृत्व में एक करोड़ लोगों का हस्ताक्षर करा कर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को सौंपने की योजना है. इस मौके पर लोगों ने सत्याग्रही फॉर्म भरे तथा स्थानीय स्तर पर एक टीम का गठन किया गया, जिसके संयोजक जीतेन्द्र यादव चुने गए. हस्ताक्षर अभियान को गति देने में पूर्व विधायक महेश्वर प्रसाद यादव जी-जान से जुटे हैं. इस मौके पर अनिल प्रकाश, रंजीव, चंद्रकांत मिश्र, आनंद पटेल आदि मौजूद थे. 





बागमती की व्यथा कथा में जुटे दिग्गज



- बांध निर्माण के विरोध में आवाज हुई बुलंद 
- बागमती पर बांध खतरनाक : खान 
मुजफ्फरपुर : बागमती सहित देश भर की नदियों पर जो बांध परियोजनाएं चलायी जा रही हैं, उसके पीछे जनकल्याण की भावना कम, कमीशनखोरी की भावना अधिक है. नदियां तो पहाड़ों से निकले जल का रास्ता मात्र है. इसके बहाने से नहीं, बल्कि इन्हें बांधने से समस्याएं उत्पन्न होती हैं. ये बातें सेवानिवृत डीजीपी रामचंद्र खान ने बागमती की व्यथा कथा पर 22 अप्रैल को बिहार विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र  विभाग में आयोजित जनसंवाद को संबोधित करते हुए कही. इस जनसंवाद में जुटे सभी लोगों से एक स्वर से बागमती को बांधे जाने का मुखर विरोध किया. पर्यावरणविद व लेखक अनिल प्रकाश के नेतृत्व में बागमती बांध निर्माण के विरोध में चल रहे इस आन्दोलन को देश भर से लोगों, अभियंताओं, लेखकों, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्तायों आदि का पूरजोर समर्थन मिल रहा है. अब तो बागमती इलाके के प्रवासी बिहारियों का भी समर्थन मिलाने लगा है. इस कार्यक्रम में नदी विशेषज्ञ रंजीव कुमार, पूर्व विधायक महेश्वर प्रसाद यादव, डॉ हेमनारायण विश्वकर्मा, मधुबनी के कामेश्वर कामत, नदियों कर काम करने वाले विजय कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता शाहीना प्रवीण, पूर्व सिंडिकेट सदस्य भूपनारायण सिंह, डॉ. कुमार गणेश, डॉ. हरेन्द्र कुमार, डॉ. एस मुर्तुजा, किसान नेता वीरेंदर राय, नन्द कुमार नंदन, अशोक भारत समेत सैकड़ों की संख्या में बुद्धिजीवी मौजूद थे. सञ्चालन पत्रकार एम अखलाक ने किया. प्रथम सत्र की अध्यक्षता डॉ. हरेन्द्र कुमार और दूसरे सत्र की अध्यक्षता वीरेंदर राय ने की. धन्यवाद ज्ञापन आनंद पटेल ने किया.



कंपनियों के कुचक्र में फंसी बिहार की कृषि

* अनिल प्रकाश 
जहाँ देश के लगभग 68 प्रतिशत लोग गाँव और कृषि पर निर्भर हैं, वहीं बिहार की 88.७ प्रतिशत आबादी गांवों में रहती हैं. कृषि, पशुपालन, मछलीपालन और कुटीर उद्योगों के आधार पर जीवनयापन करती हैं. कृषि क्षेत्र की उपेक्षा, सामंती भूमि संबंध और नदियों के प्रबंधन में हुई गंभीर गलतियों के कारण अत्यधिक उर्वर भूमि वाला बिहार का ग्रामीण क्षेत्र गरीबी में जी रहा है. बड़ी संख्या में लोगों को रोजी-रोटी के लिए दूसरे राज्यों में पलायन करना पड़ता है. लेकिन इन्हीं प्रवासी मजदूरों द्वारा भेजे गए पैसों से बिहार के आर्थिक जीवन में गतिशीलता है तथा विकास का सिलसिला तेज हुआ है और सामाजिक संबंधों में भी बड़ा बदलाव आया है. साथ ही, भूमि संबंधों में भी बदलाव आ रहा है. यह सब नीचे से हो रहा है. इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर भी पैदा हो रहे हैं. लेकिन दुखद बात यह है कि आज भी यहाँ की प्रशासनिक मशीनरी योजना व्यय (जिसमें कृषि क्षेत्र की आवंटित राशि भी शामिल है) की पूरी राशि खर्च नहीं कर पाती. काफी राशि हर साल लौट जाती है. पिछले वर्ष की तुलना में इस वित्तीय वर्ष में कृषि क्षेत्र के लिए योजना व्यय की राशि लगभग दुगुनी कर दी गयी है. लेकिन 24 हजार करोड़ रुपये के कुल योजना व्यय में यह अभी भी मात्र 846.86 करोड़ ही है. बिहार का भविष्य उज्ज्वल तभी हो सकता है जब कृषि से संबंधित क्षेत्रों का विकास किया जाये और कृषि आधारित छोटे-छोटे उद्योगों का जाल बिछाया जाये. इसके लिए ज्यादा पूँजी की जरूरत नहीं होगी. साथ ही, करोड़ों बेरोजगारों के लिए आजीविका के सम्मानपूर्ण अवसर प्राप्त होंगे. अब तक इस दिशा में कोइ ठोस नीति नहीं बनी है. उल्टे बड़ी-बड़ी बीज कंपनियां किसानों को झांसे में डालकर अनैतिक रूप से अपने बीजों का ट्रायल करवाती रहती है और बार-बार किसानों को कंगाल बना देती हैं. अगर हम अपने कृषि क्षेत्र को इस प्रकार के षड्यंत्रों से बचा लें और सही तरीके से उसकी तरक्की पर बल दे तो बिहार खुशहाली की राह पर तेजी से चल पड़ेगा. जिन बड़े-बड़े भूपतियों ने सीलिंग से फाजिल जमीन, गैरमजरुआ जमीन और भूदान की जमीन (जो कुल मिलाकर लगभग 50 लाख एकड़ है) पर नाजायज कब्ज़ा जमा रखा है और उसपर ठीक से खेती भी नहीं करते और परिणामतः उन खेतों की प्रति एकड़ उत्पादकता भी बहुत कम है. उसे मुक्त करा कर भूमिहीन किसानों में बांट दिया जाये, तो काहिली और निठ्ठलेपन की संस्कृति समाप्त होगी और उद्यमशीलता तेजी से बढ़ेगी. यह 60 लाख एकड़ जमीन, 50 लाख भूमिहीन परिवार को मिल जाये तो एक ओर बिहार में अन्न उत्पादन में अत्यधिक बढोतरी हो जाएगी तथा लोगों को जीविका का सम्मानजनक साधन मिल जाएगा.
कृषि विनाश की कहानी - 1
मुंग के पौधों में दाने नहीं आए : बिहार सरकार के कृषि विभाग के अधिकारियों ने आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र से बड़ी बीज कंपनियों के मूंग के बीज मंगवाकर किसानों के बीच उनका मुफ्त वितरण करवाया. उसके साथ खाद, कीटनाशक, खरपतवार नाशक आदि भी वितरित किये गए. पौधे खूब लहलहाये. उन्हें देखकर किसान हर्षित थे. लेकिन इन पौधों में दाने नहीं आये. जिन किसानों ने राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के एसएमएल 668 तथा सोना नामक बीज या अपने स्थानीय बीजों का प्रयोग किया था, उनमें खूब दाने आये थे. मुजफ्फरपुर जिले के एक हज़ार किसान आज रो रहे हैं. मधुबनी, दरभंगा, सुपौल और बक्सर के किसानों ने भी बताया कि उनके यहाँ भी मूंग की फसल में दाने नहीं आये. बिहार के कृषि विभाग के पास मूंग के क्रॉप फेल्योर की पूरी जानकारी है, लेकिन वे छिपाने की कोशिश कर रहे हैं. किसानों की फसल क्षति का मुआवजा देने से भी इनकार कर रहे हैं. कृषि विभाग के संयुक्त कृषि निदेशक राजेंद्र दास का कहना है कि रबी या खरीफ फसल में क्षतिपूर्ति अनुदान की व्यवस्था की गयी है. कृषि विभाग को किसने यह अधिकार दिया कि इतने बड़े पैमाने पर किसानों को अंधेरे में रखकर मूंग के बीज का ट्रायल करवाये ?

बुधवार, 11 अप्रैल 2012

कार्बन क्रेडिट पर राष्ट्रीय सेमिनार २८ को

कार्बन क्रेडिट पर राष्ट्रीय सेमिनार २८ अप्रैल को मुजफ्फरपुर के भगवानपुर स्थित अनुराधा हॉल में होना है. किसान संघर्ष मोर्चा के बैनर तले आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब, मध्य प्रदेश समेत सात राज्यों से कार्बन क्रेडिट के जानकार शिरकत कर रहे हैं. किसान संघर्ष मोर्चा के संयोजक वीरेंदर राय कार्यक्रम की तैयारी में अपनी पूरी टीम के साथ जुटे हैं. इसी सिलसिले में वीरेंदर राय का कार्बन क्रेडिट के मुद्दे पर उनके सारगर्भित विचार और आन्दोलन से सम्बंधित जानकारियां आदि विभिन्न अखबारों में प्रकाशित हुए है. देखें अखबारों का कतरन (विस्‍तार से पढ़ने के लिए कतरनों पर क्लिक करें)- 


 

सोमवार, 9 अप्रैल 2012

बागमती को बांधे जाने के खिलाफ खड़े हुए किसान

 - अंबरीश कुमार        
नेपाल से निकलने वाली बागमती नदी को कई दशकों से बांधा जा रहा है। यह वह बागमती है जिसकी बाढ़ का इंतजार होता रहा है बिहार में वह भी बहुत बेसब्री से। जिस साल समय पर बाढ़ न आए उस साल पूजा पाठ किया जाता एक नहीं कई जिलों में। मुजफ्फरपुर से लेकर दरभंगा,सीतामढ़ी तक। वहा इस बागमती को लेकर भोजपुरी में कहावत है ,बाढे जियली -सुखाड़े मरली। इसका अर्थ है बढ़ से जीवन मिलेगा तो सूखे से मौत। नदी और बाढ़ से गाँव वालों का यह रिश्ता विकास की नई अवधारणा से मेल नहीं खा सकता पर वास्तविकता यही है। बागमती नेपाल से बरसात में अपने साथ बहुत उपजाऊँ मिटटी लाती रही है जो बिहार के कई जिलों के किसानो की खुशहाली और संपन्नता की वजह भी रही है। बाढ़ और नई मिट्टी से गाँव में तालाब के किनारे जगह ऊँची होती थी और तालाब भी भर जाता था। इसमे जो बिहार की छोटी छोटी सहायक नदिया है वे बागमती से मिलकर उसे और समृद्ध बनाती रही है। पर इस बागमती को टुकड़ो टुकड़ों में जगह जगह बाँधा जा रहा है । यह काम काफी पहले से हो रहा है और जहाँ हुआ वहा के गाँव डूबे और कई समस्या पैदा हुई। नदी के दोनों तटों को पक्का कर तटबंध बना देने से एक तो छोटी नदियों का उससे संपर्क ख़त्म हो गया दूसरे लगातार गाद जमा होने से पानी का दबाव भी बढ़ गया और कई जगह तटबंध टूटने की आशंका भी है। अब यह काम बिहार के मुजाफ्फरपुर जिले में शुरू हुआ तो वहा इसके विरोध में एक आंदोलन खड़ा हो गया है। इस आंदोलन की शुरुआत बीते पंद्रह मार्च को रामवृक्ष बेनीपुरी के गाँव से लगे मुजफ्फरपुर के कटरा प्रखंड के गंगिया गाँव से हुई जिसमे महिलाओं की बड़ी भागेदारी ने लोगों का उत्साह बढ़ा दिया। 

अस्सी के दशक में गंगा की जमींदारी के खिलाफ आंदोलन छेड़ने वाले संगठन गंगा मुक्ति आंदोलन के प्रमुख नेता अनिल प्रकाश इस अभियान के संचालकों में शामिल है और इस सिलसिले में वे बिहार के बाहर के जन संगठनों से संपर्क कर इस आंदोलन को ताकत देने की कवायद में जुटे है। अब तक इस अभियान के लिए एक हजार सत्याग्रही तैयार हो चुके है। अनिल प्रकाश ने कहा कि बागमती नदी के तटबंध का निर्माण नहीं रुका तो सिर्फ मुजफ्फरपुर जिले के सौ से ज्यादा गांवों में जल प्रलय होगी और यह सिलसिला कई और जिलों तक जाएगा। बागमती नदी के तटबंध के खिलाफ पिछले एक महीने की दौरान जो सुगबुगाहट थी अब वह आंदोलन में तब्दील होती नजर अ रही है। खास बात यह है कि इस आंदोलन का नेतृत्व वैज्ञानिक और इंजीनियर भी संभाल रहे है। इस अभियान के समर्थन में अब एक लाख लोग हस्त्ताक्षर कर प्रधानमंत्री से दखल देने की अपील करने जा रहे है।

अनिल प्रकाश के मुताबिक लंबे अध्ययन और बैठको के बाद १५ मार्च को मुजफ्फरपुर के कटरा प्रखंड के गंगिया स्थित रामदयालू सिंह उच्च विद्यालय परिसर में बागमती पर बांध के निर्माण के विरोध में बिगुल फूंका गया। हजारों की संख्या में प्रभावित परिवारों के लोगों का जमघट लगा। गायघाट, कटरा, औराई के गाँव-गाँव से उमड़ पड़े बच्चों, बूढ़ों, नौजवानों, महिलायों और स्कूली छात्रों की आँखों में सरकार के विरूद्ध आक्रोश झलक रहा था। इससे पहले नदी विशेषज्ञ डॉ. डीके मिश्र, अनिल प्रकाश, अभियान के संयोजक महेश्वर प्रसाद यादव और मिसाइल और एअर क्राफ्ट वैज्ञानिक मानस बिहारी वर्मा ने इस मुद्दे के विभिन पहलुओं का अध्ययन किया और फिर आंदोलन की जमीन बनी। 

छह अप्रैल को मुजफ्फरपुर जिले के गायघाट स्थित कल्याणी गाँव की जनसभा से यह अब आंदोलन में तब्दील हो चुका है। अनिल प्रकाश ने आगे कहा -बागमती पर बांध गैर जरूरी व अवैज्ञानिक है। हमें नदी के साथ रहने की आदत है। बांध की कोइ जरूरत नहीं है। हमारी लडाई अब मुआवजे की नहीं, बल्कि बागमती बांध को रोकने की होगी। गाँव-गाँव में बैठक कर सत्याग्रहियों को भर्ती किया जायेगा। केंद्रीय कमिटी का गठन कर उसके निर्णय के अनुसार आगे की रणनीति तय की जाएगी। जबकि नदी व बाढ़ विशेषज्ञ डॉ. दिनेश कुमार मिश्र ने कहा -तटबंध बांध कर नदियों को नियंत्रित करने के बदले सरकार इसके पानी को निर्बाध रूप से निकासी की व्यवस्था करे। तटबंध पानी की निकासी को प्रभावित करता है. टूटने पर जान-माल की व्यापक क्षति होती है। सीतामढ़ी जिले में बागमती पर सबसे पहला तटबंध बनने से मसहा आलम गाँव प्रभावित हुआ था। उस गाँव के ४०० परिवारों को अब तक पुनर्वास का लाभ नहीं मिला है और रुन्नीसैदपुर से शिवनगर तक के १६०० परिवार पुनर्वास के लाभ के लिए भटक रहे हैं। दोनों तटबंधों के बीच गाद भरने की भी एक बड़ी समस्या है। रक्सिया में तटबंध के बीच एक १६ फीट ऊंचा टीला था. पिछले वर्ष मैंने देखा था, यह बालू में दबकर मात्र तीन फीट बचा है। बागमती नदी बार-बार अपनी धारा बदलती है। 

विशेषग्य ही नहीं गाँव के लोगभी इस सवाल पर काफी मुखर है। भागवतपुर गाँव के सूरत लाल यादवने कहा -बागमती को बांधा तो जमीन, घर-द्वार सब कुछ चला जाएगा। बाढ़ से नुकसान से ज्यादा लाभ होता है. दो-चार-दस दिन के कष्ट के बाद तो सब कुछ अच्छा ही होता है. जमीन उपजाऊ हो जाती है. पैदावार अधिक हो जाता है। बन्स्घत्ता के रौदी पंडित,के मुताबिक बांध बनने से बांध के बाहर की जमीन का दर दो लाख प्रति कट्ठा हो गया है, जबकि भीतर की जमीन १५ हजार रूपये प्रति कट्ठा हो गया है। जबकि गंगिया के रंजन कुमार सिंह ने कहा - अभी हमलोग जमींदार हैं. कल कंगाल हो जाएगे। बांध के भीतर मेरा १० एकड़ जमीन आ जाएगा और हम बर्बाद हो जाएगा। रंजीव का मानना है कि बांध विनाशकारी है। नदियों को खुला छोड़ देना चाहिए। नदियों की पेटी में जमे गाद को निकालने की व्यवस्था हो।

Link-  http://epaper.jansatta.com/08042012/index.html
           http://ambrish-kumar.blogspot.in/2012/04/blog-post_07.html

मंगलवार, 20 मार्च 2012

आन्दोलन कमजोर करने की साजिश


कटरा, मुजफ्फरपुर (बिहार) : बागमती बांध निर्माण के खिलाफ चल रहे आन्दोलन को कमजोर करने की साजिश चल रही है. आन्दोलनकारियों में फूट डालने, संघर्ष को कमजोर करने, आन्दोलन के समर्थक ग्रामीणों को झूठे मुकदमों में फंसाने का सिलसिला शुरू हो गया है. जानकारी हो कि कटरा थाना क्षेत्र के खंगुरा गाँव स्थित बागमती बांध परियोजना के कैम्प कार्यालय पर १८ मार्च को रात उपद्रवियों के हमले में ग्रामीण शिबू साह की मौत हो गयी थी. पुलिस ने प्रथम दृष्टया घटना का मुख्य कारण ठेकेदारी को लेकर वर्चस्व की लडाई मान रही है. जबकि बांध समर्थकों, ठेकेदारों, इस परियोजना से जुड़े नेताओं ने मृतक के परिजन को दबाव व झांसे में लाकर आन्दोलन से जुड़े स्थानीय गंगिया निवासी चंद्रकांत मिश्र व उनके पुत्र को भी नामजद अभियुक्त बना डाला है. 


जाँच टीम गठित :
घटना के तुरंत बाद 
१९ मार्च को बिहार शोध संवाद की पांच सदस्यीय टीम घटनास्थल का दौरा कर मामले की जाँच की.  टीम ने सभी पक्षों से बातचीत कर तथ्य जुटाया. मृतक के परिजन से भी जानकारी ली. जाँच टीम में शाहिद कमल, डॉ. श्याम कल्याण, डॉ. हेम नारायण विश्वकर्मा, आनंद पटेल, सत्येन्द्र कुमार शर्मा शामिल थे.


 जाँच रिपोर्ट जारी :२० मार्च को मुजफ्फरपुर में बिहार शोध संवाद के अनिल प्रकाश ने जाँच रिपोर्ट जारी कर घटना की उच्चस्तरीय जाँच की मांग की, ताकि निर्दोष न फंस सके. इस मौके पर जांच टीम के सभी सदस्य मौजूद थे. जांच रिपोर्ट के अनुसार, यह घटना बांध निर्माण में लगे ठेकेदारों के बीच वर्चस्व का नतीजा है. अनिल प्रकाश, डॉ. हरेन्द्र कुमार, महेश्वर यादव, बिरेन्द्र राय व गंगा प्रसाद ने डीएम, एसपी, आईजी व अन्य प्रशासनिक अधिकारियों से अपील की है कि वे खुद से इस घटना की जाँच करे.

शुक्रवार, 16 मार्च 2012

बागमती बांध निर्माण के विरोध में हुआ शंखनाद

संबोधित करते नदी विशेषज्ञ डॉ. डीके  मिश्र. साथ में अनिल प्रकाश.
१५ मार्च को कटरा प्रखंड के गंगिया स्थित रामदयालू सिंह उच्च विद्यालय के प्रांगन से बागमती पर बांध के निर्माण के विरोध में बिगुल फूंका गया. हजारों की संख्या में प्रभावित परिवारों के लोगों का जमघट लगा. गायघाट, कटरा, औराई के गाँव-गाँव से उमड़ पड़े  बच्चों, बूढ़ों, नौजवानों, महिलायों और स्कूली छात्रों की आँखों में सरकार के विरूद्ध आक्रोश झलक रहा था. गगनभेदी नारे लग रहे थे. सबके जेहन में आन्दोलन की आग धधक रही थी.
मौका था बिहार शोध संवाद की प्रेरणा से तटबंधरहित, विस्थापंमुक्त बागमती बचाओ अभियान के सम्मलेन का. बिहार शोध संवाद के संस्थापक अनिल प्रकाश और अभियान के संयोजक महेश्वर प्रसाद यादव ने आन्दोलन को अंजाम तक पहुँचाने का बीड़ा उठाया. सम्मेलन को नदी विशेषज्ञ डॉ. दिनेश कुमार मिश्र, प्रयावरणविद अनिल प्रकाश, रंजीव, शशि शेखर, वीरेंदर राय, चन्द्र कान्त मिश्र, गंगा प्रसाद, लछनदेव प्रसाद सिंह, डॉ. हेम नारायण विश्वकर्मा, भारती, शिवनाथ पासवान, उदय शंकर सिंह, रामबृक्ष सहनी आदि ने संबोधित किया. मौके पर अप्पन समाचार की रिंकू कुमारी, खुशबू कुमारी, अमृतांज इन्दीवर समेत हजारों लोग उपस्थित थे. 

अनिल प्रकाश, संस्थापक, बिहार शोध संवाद कहते हैं : 
बागमती पर बांध गैर जरूरी व अवैज्ञानिक है. हमें नदी के साथ रहने की आदत है. बांध की कोइ जरूरत नहीं है. हमारी लडाई अब मुआवजे की नहीं, बल्कि बागमती बांध को रोकने की होगी. गाँव-गाँव में बैठक कर सत्याग्रहियों को भर्ती किया जायेगा. सेन्ट्रल कमिटी का गठन कर उसके निर्णय के अनुसार आगे की रणनीति तय की जाएगी.
डॉ. दिनेश कुमार मिश्र, नदी व बाढ़ विशेषज्ञ कहते हैं :
तटबंध बांध कर नदियों को नियंत्रित करने के बदले सरकार इसके पानी को निर्बाध रूप से निकासी की व्यवस्था करे. तटबंध पानी की निकासी को प्रभावित करता है. टूटने पर जान-माल की व्यापक क्षति होती है. सीतामढ़ी जिले में बागमती पर सबसे पहला तटबंध बनने से मसहा आलम गाँव प्रभावित हुआ था. उस गाँव के ४०० परिवारों को अब तक पुनर्वास का लाभ नहीं मिला है और रुन्नीसैदपुर से शिवनगर तक के १६०० परिवार पुनर्वास के लाभ के लिए भटक रहे हैं. दोनों तटबंधों के बीच गाद भरने की भी एक बड़ी समस्या है. रक्सिया में तटबंध के बीच एक १६ फीट ऊंचा टीला था. पिछले वर्ष मैंने देखा था, यह बालू में दबकर मात्र तीन फीट बचा है. बागमती नदी बार-बार अपनी धारा बदलती है.    
रंजीव, नदी के जानकार कहते हैं : बांध विनाशकारी है. नदियों को खुला छोड़ देना चाहिए. नदियों की पेटी में जमे गाद को निकालने की व्यवस्था हो.
जनता बोली : 
सूरत लाल यादव, भगवतपुर, गायघाट कहते हैं :  जमीन, घर-द्वार सब कुछ चला जायेगा. बाढ़ से नुकसान से ज्यादा लाभ होता है. दो-चार-दस दिन के कष्ट के बाद तो सब कुछ अच्छा ही होता है. जमीन उपजाऊ हो जाती है. पैदावार अधिक हो जाता है.
रौदी पंडित, बंसघत्ता कहते हैं :  बांध बनने से बांध के बाहर की जमीन का दर दो लाख प्रति कट्ठा हो गया है, जबकि भीतर की जमीन १५ हजार रूपये प्रति कट्ठा हो गया है.
रंजन कुमार सिंह, गंगिया, कटरा कहते हैं :  अभी हमलोग जमींदार हैं. कल कंगाल हो जायेंगे. बांध के भीतर मेरा १० एकड़ जमीन आ जायेगा. बर्बाद हो जायेंगे.

सोमवार, 12 मार्च 2012

बागमती तटबंध के निर्माण को रोकेगी जनता

-- बिहार शोध संवाद की टीम ने किया बागमती क्षेत्र का दौरा
बागमती क्षेत्र के दौरे के दौरान बैठक करते टीम के सदस्य
मुजफ्फरपुर/औराई : बिहार शोध संवाद के संस्थापक व लेखक अनिल प्रकाश के नेतृत्व में एक टीम ने रविवार को बागमती क्षेत्र का दौरा किया. इस टीम में तटबंध रहित विस्थापन मुक्त बागमती बचाओ के संयोजक पूर्व विधायक महेश्वर यादव, किसान संघर्ष मोर्चा के संयोजक वीरेंदर राय, डॉ. हेमनारायण विश्वकर्मा, आनंद पटेल, हुकुमदेव प्रसाद यादव, चंद्रकांत मिश्र शामिल थे. दल ने बागमती नदी के तटबंध के अन्दर एवं बाहर के गाँव बभनगामा, हरना, राघोपुर, औराई, बकुची और गंगीया समेत कई गांवों के जनता से मिल कर उनकी व्यथा सुनी. श्री प्रकाश ने कहा कि १५ मार्च को गंगीया स्थित रामदयालू उच्च विद्यालय के मैदान में आयोजित बागमती बचाओ सम्मलेन में लगभग ५ हजार ग्रामीणों के भाग लेने की सम्भावना है. इस सम्मलेन में अर्थशास्त्री प्रो. इश्वरी प्रसाद, जनपक्षी इंजिनियर एवं नदी विशेषज्ञ डी. के. मिश्र, नदी विशेषज्ञ रंजीव, वरिष्ठ पत्रकार कुलभूषण, निराला तिवारी, सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. हरेन्द्र कुमार शामिल हो रहे है. विशेषज्ञों एवं समाजकर्मियों को भी आमंत्रित किया गया है. सम्मलेन में विनाशकारी तटबंधों के निर्माण को रोकने तथा पहले से बने तटबंधों में स्लूइस गेट लगाने, पुर्नवास के लिए रणनीति तय की जाएगी.