संजय▪पटना, प्रभात खबर, 09 मई , पटना संस्करण
Published in Prabhat Khabar on 09th May 2012 |
तटबंधों की मरम्मत पर सरकारी खजाने से हर साल अच्छी-खासी रकम खर्च होती रही है. पिछले 22 वर्षों में 2752.63 करोड़ रुपये खर्च हुए और इसी अवधि में तटबंध टूटने की 268 घटनाएं हुईं. इस साल तटबंधों की मरम्मत के नाम पर 702.38 करोड़ रुपये खर्च होनेवाले हैं. यह अब तक की सबसे बड़ी रकम है. लेकिन, उत्तर और पूर्व बिहार के लोग बाढ. से बचाव को लेकर आश्वस्त नहीं हैं. उनका सवाल है कि आखिर बाढ. से मुक्ति कब मिलेगी?
हर साल करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद तटबंधों का टूटना जारी है. 2006 से 2012 तक (एनडीए शासनकाल में) तटबंध की मरम्मत के नाम पर 1791.78 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं. तटबंध मरम्मत में अगर बाढ. प्रबंधन के तहत योजना का चयन हो, तो बिहार को केंद्र सरकार से 75 फीसदी राशि मिल जाती है. राज्य योजना से चयनित योजनाओं में बिहार सरकार को पूरा पैसा खुद खर्च करना पड़ता है. 1987 से 2011 तक सूबे की नदियाें पर बने तटबंध 371 बार टूट चुके हैं. इसमें 18 अगस्त, 2008 में कोसी नदी के कुसहा (भारत-नेपाल सीमा पर स्थित) तटबंध का टूटना भी शामिल है, जिसमें पांच जिलों की 30 लाख आबादी पीड़ित हुई थी. इसके बावजूद राज्य सरकार ने इसका स्थायी समाधान निकालने के बजाय तटबंधों की मरम्मत पर ही जोर दे रही है. कई जिलों का हाल यह है कि वहां हर साल टूटान होता है और काम करने वाली एजेंसी भी वही रहती है. इस साल अधवारा समूह की नदियों और नेपाली भू-भाग में स्थित कोसी तटबंध की मरम्मत के लिए पहली बार बिहार सरकार को सीधे राशि मिली है.
हर साल टूटते हैं स्पर व तटबंध : भागलपुर में विक्रमशिला के डाउन स्ट्रीम में इस्माइलपुर से बिंदटोली के बीच बने नौ स्पर (नदी की धार से तटबंध को सुरक्षित रखने के लिए बननेवाला लंबा बांध) पिछले दो वर्षों से क्षतिग्रस्त होते रहे हैं. पिछले वर्ष स्पर टूटने पर आध दर्जन इंजीनियरों को निलंबित और एजेंसी को डिफॉल्टर घोषित किया गया था. इसी तरह पूर्वी चंपारण के कोयरपट्टी व गोपालगंज जिले के पटहारा छरकी पर बना तटबंध भी साल-दो साल के अंतराल पर टूट जाता है.
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