बुधवार, 23 मई 2012

तटबंध जिसने खेतों की उपज छीन ली

बागमती नदी की जलधारा को बांधने की कोशिश ने खुशहाल आबादी को उजाड़ दिया

- अनिल प्रकाश 

Published in Hindustan News Paper 
On 23-05-2012 (Editorial Page no- 8)
बिहार स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी और मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेज ने मिलकर आईआईटी, कानपुर के दो प्रोफेसर विकास रामाशय और राजीव सिन्हा से बाढ़ पर एक रिपोर्ट बनवाई है। रिपोर्ट का कहना है कि इंजीनियरों व वैज्ञानिकों के तमाम प्रयासों के बावजूद हर बार नदियों के तटबंध टूट जाते हैं और नदियां अपनी धारा बदलने लगती हैं। हर साल भारी धनराशि खर्च की जाती है, लेकिन अपेक्षित परिणाम नहीं आता। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अनेक मामलों में बाढ़ नियंत्रण के इंजीनियरिंग समाधान न केवल अस्थायी साबित हुए हैं, बल्कि इनसे सुरक्षा की झूठी आशा पैदा होती है। लोग निश्चिंत हो जाते हैं और जान-माल की भारी क्षति होती है।

उत्तर बिहार की लगभग सभी नदियों का उद्गम नेपाल का हिमालय है। हिमालय आज भी ऊपर उठ रहा है, जिसके कारण हिमालय क्षेत्र में हर साल लगभग एक हजार छोटे-बड़े भूकंप के झटके आते रहते हैं। इससे पैदा होने वाले भूस्खलन से निकली मिट्टी-बालू बरसात के समय गाद के रूप में भारी मात्र में आती है। बागमती और कमला नदियों में आने वाली गाद अत्यधिक उपजाऊ होती है। इसलिए इस इलाके में बाढ़ को लोग वरदान मानते थे। कहावत है- बाढ़े जीली, सुखाड़े मरली।  बाढ़ धीरे-धीरे आती थी और खेतों में उपजाऊ  मिट्टी बिछा जाती थी। खेत को जोते बिना ही किसान बीज बिखेर देते थे। इतनी फसल होती थी कि लोगों को परदेस जाकर कमाने की जरूरत नहीं पड़ती थी। पर 1954 के बाद, जब बाढ़ नियंत्रण के नाम पर 12 किलोमीटर चौड़ाई में बहने वाली बागमती को तीन किलोमीटर की चौड़ाई में तटबंधों से बांधा जाने लगा, तो मुसीबतें बढ़ने लगीं। लोग उजड़ गए। पुनर्वास का कोई इंतजाम नहीं हुआ। तटबंध के अंदर के खेत बालू से भर गए।
सीतामढ़ी, शिवहर, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, दरभंगा, सहरसा, खगड़िया जिलों से गुजरने वाली बागमती नदी और उसकी सहायक नदियां लाल बकेया, लखनदेई, मनुषमारा और अधवारा समूह की सैकड़ों जलधाराएं तटबंध निमार्ण के पूर्व उन्मुक्त बहती थीं। पर जिन-जिन इलाकों में तटबंध बन गए हैं, वहां जल निकासी का मार्ग बंद  है। जल-जमाव की समस्या पैदा हो गई है। तटबंध के अंदर का हिस्सा काफी ऊंचा हो गया है और बाहरी हिस्सा नीचा रह गया, इसलिए जल निकास का उपाय संभव नहीं है।
वर्ल्ड कमीशन ऑन डैम्स और विश्व बैंक द्वारा गठित विशेषज्ञ समितियों ने भी बांध तथा तटबंधों को अवैज्ञानिक तथा पर्यावरण के लिए घातक मानते हुए इनकी डी-कमीशनिंग की सिफारिश की है। गाद की मात्र को देखते हुए सभी ने इसे गलत ठहराया है। बागमती नदी के जिन इलाकों में अभी तक तटबंध नहीं बने हैं, वहां लोग इसके निर्माण का विरोध कर रहे हैं। लेकिन जिन्होंने विशेषज्ञों की राय पर ध्यान नहीं दिया, वे इन आंदोलनों की बात आसानी से कहां मानेंगे?


शनिवार, 12 मई 2012

बागमती की व्यथा कथा


बागमती पर बोलते हुए अनिल प्रकाश 


आज दिनांक 12 मई 2012 को सेडेड (साउथ एसियन डायलाग आन इक्लाजिकल डेमोक्रेसी) के दिल्ली  दफ्तर में बिहार के अनिल प्रकाश ने ‘बागमती की व्यथा एवं आक्रोश कथा’’ पर बिहार में चल रहे जन आंदोलन बागमती बचाओ अभियान के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि ‘बागमती  व्यथा कथा’ अब आक्रोश गाथा में दबदिल हो गई है। बागमती पर  बन रहे तटबंध के कारण इन क्षेत्रों के लोगों में  रोष व्याप्त हो गया है। हालांकि अभी बिहार सरकार की तरफ से दमनांत्मक कार्यवाही नहीं हुई है, लेकिन  आंदोलनकारी तटबंध नहीं बनाने की मांग पर अडिग हैं और बने हुए तटबंधों को सरकार द्वारा तोड़े जाने के लिए प्रतिबध है, इसलिए लोगों को चैकन्ना रहने को कहा गया। श्री प्रकाश ने कहा कि ‘हम लड़ेंगे, हम जीतेंगे’  

प्रेस विज्ञप्ति


बिहार शोध संवाद/बागमती बचाओ अभियान  

मो-09304549662, ईमेल-anilprakashganga@gmail.com

12.05.2012 कैम्प-दिल्ली


प्रकाशनार्थ 

बागमती बचाओ अभियान के संयोजक महेश्वर प्रसाद यादव को ठेकेदारों के अपराधी शूटर द्वारा फोन पर दी गई धमकी से तटबंध रोको अभियान कमजोर नहीं पड़ेगा बल्कि सत्याग्रही जनता का संघर्ष और तीव्र तथा व्यापक हो जायेगा। हमारे जुझारू साथी हर प्रकार की कुर्बानी देने के लिये तैयार हैं। किसी भी कीमत पर बागमती नदी पर विनाशकारी तटबंध का निर्माण होने नहीं दिया जाएगा। 

ऐसे तत्व धमकी देने या हमला करने की प्रवृति को छोड़ दें अन्यथा जनता का गुस्सा उन्हें कहीं का नहीं छोड़ेगा। संघर्षशील जनता से हमारी अपील है कि संयम से काम लें, लेकिन अपराधी ठेकेदारों एवं उनके दलालों का सामाजिक बहिष्कार करें। 

पुलिस धमकी देने वाले शूटर को तथा अपराधी ठेकेदार को तत्काल गिरफ़तार करे। जनता के धैर्य की परीक्षा न ले। 


अनिल प्रकाश 


गुरुवार, 10 मई 2012

तटबंध का खेल : बांध टूटने की जांच पूरी नहीं, फिर बन रहे नये तटबंध

संवाददाता▪पटना, प्रभात खबर, 10 May 20012, पटना संस्करण

तटबंधों की मरम्मत पर पिछले 22 वर्षों में 2,752 करोड़ रुपये खर्च हुए, लेकिन बाढ. की विभीषिका कम नहीं हुई. 1980 से 2008 के बीच (28 वर्षों में) बाढ. ने 6,444 लोगों की जान ली. कोसी के कुसहा बांध में टूटान को लोग अब तक नहीं भूले हैं. 

2008 में कुसहा बांध टूटने के कारण करीब 30 लाख की आबादी प्रभावित हुई थी. कुसहा बांध टूटने के लिए कौन जिम्मेवार है, यह तय होना अभी बाकी है. जांच के लिए गठित न्यायिक आयोग ने अब तक अपनी रिपोर्ट नहीं दी है.

बनी हुई है परिपाटी


तटबंधों की मरम्मत पर हर साल करोड़ों खर्च और फिर अगले साल उसी तटबंध की मरम्मत की परिपाटी पिछले कई वर्षों से जारी है. राज्य सरकार अभी और नये तटबंध बनाने योजना पर काम कर रही है. सूबे में अभी 3,649 किमी तटबंध है. अगले पांच साल में 1,676 किलोमीटर और तटबंध बनाने की योजना है. विभाग का दावा है कि इससे लगभग 26.86 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को बाढ. से सुरक्षित रखा जायेगा.



चालू वित्तीय वर्ष 2012-13 में विभाग ने 406 किलोमीटर तटबंध बनाया जायेगा.

कब रुकेगा तटबंध मरम्मत का ‘खेल’ ?

संजयपटना, प्रभात खबर, 09 मई , पटना संस्करण 

Published in Prabhat Khabar on 09th May 2012
तटबंधों की मरम्मत पर सरकारी खजाने से हर साल अच्छी-खासी रकम खर्च होती रही है. पिछले 22 वर्षों में 2752.63 करोड़ रुपये खर्च हुए और इसी अवधि में तटबंध टूटने की 268 घटनाएं हुईं. इस साल तटबंधों की मरम्मत के नाम पर 702.38 करोड़ रुपये खर्च होनेवाले हैं. यह अब तक की सबसे बड़ी रकम है. लेकिनउत्तर और पूर्व बिहार के लोग बाढ. से बचाव को लेकर आश्‍वस्त नहीं हैं. उनका सवाल है कि आखिर बाढ. से मुक्ति कब मिलेगी?


हर साल करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद तटबंधों का टूटना जारी है. 2006 से 2012 तक (एनडीए शासनकाल में) तटबंध की मरम्मत के नाम पर 1791.78 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं. तटबंध मरम्मत में अगर बाढ. प्रबंधन के तहत योजना का चयन होतो बिहार को केंद्र सरकार से 75 फीसदी राशि मिल जाती है. राज्य योजना से चयनित योजनाओं में बिहार सरकार को पूरा पैसा खुद खर्च करना पड़ता है. 1987 से 2011 तक सूबे की नदियाें पर बने तटबंध 371 बार टूट चुके हैं. इसमें 18 अगस्त, 2008 में कोसी नदी के कुसहा (भारत-नेपाल सीमा पर स्थित) तटबंध का टूटना भी शामिल हैजिसमें पांच जिलों की 30 लाख आबादी पीड़ित हुई थी. इसके बावजूद राज्य सरकार ने इसका स्थायी समाधान निकालने के बजाय तटबंधों की मरम्मत पर ही जोर दे रही है. कई जिलों का हाल यह है कि वहां हर साल टूटान होता है और काम करने वाली एजेंसी भी वही रहती है. इस साल अधवारा समूह की नदियों और नेपाली भू-भाग में स्थित कोसी तटबंध की मरम्मत के लिए पहली बार बिहार सरकार को सीधे राशि मिली है. 



हर साल टूटते हैं स्पर व तटबंध : भागलपुर में विक्रमशिला के डाउन स्ट्रीम में इस्माइलपुर से बिंदटोली के बीच बने नौ स्पर (नदी की धार से तटबंध को सुरक्षित रखने के लिए बननेवाला लंबा बांध) पिछले दो वर्षों से क्षतिग्रस्त होते रहे हैं. पिछले वर्ष स्पर टूटने पर आध दर्जन इंजीनियरों को निलंबित और एजेंसी को डिफॉल्टर घोषित किया गया था. इसी तरह पूर्वी चंपारण के कोयरपट्टी व गोपालगंज जिले के पटहारा छरकी पर बना तटबंध भी साल-दो साल के अंतराल पर टूट जाता है. 



शनिवार, 5 मई 2012

सरकार झुकी, वार्ता के लिए बुलाया

बागमती आन्दोलन  के अनिल प्रकाश  को जल  संसाधन  मंत्री विजय  कुमार चौधरी ने 5 अप्रैल  को फोन  कर वार्ता के लिए पटना बुलाया है. बागमती पर बन  रहे बाँध व गंडक  परियोजना के मुद्दों पर वार्ता के लिए 6 अप्रैल को एक प्रतिनिधिमंडल पटना जा रहा है, जिसमें अनिल प्रकाश, पूर्व डीजीपी रामचंद्र खान, नदी विशेषज्ञ रंजीव, वीरेंद्र राय, डॉ. कुमार गणेश और डॉ. हरेन्द्र कुमार शामिल  हैं. मंत्री ने भरोसा दिलाया है क़ि सरकार इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाएगी. 
सरकार बनाये एक्सपर्ट कमेटी: आन्दोलनकारियों ने सरकार से मांग की है कि बागमती पर बाँध का निर्माण कितना वैज्ञानिक है इसका पता लगाने के लिए एक एक्सपर्ट कमिटी का गठन करें ताकि सच्चाई सामने आ सके.
आन्दोलनकारियों का प्रस्ताव: इस कमिटी में बागमती आन्दोलन की ओर से भी चार एक्सपर्ट को शामिल किया जाये, जिनमें वैज्ञानिक डॉ. मानस बिहारी वर्मा, नदी विशेषज्ञ डीके मिश्रा, आईआईटी, कानपुर के डॉ. राजीव कुमार, कृषि  वैज्ञानिक डॉ. गोपालजी त्रिवेदी शामिल होंगे.     

सफलता की ओर बागमती आन्दोलन

मुज़फ्फरपुर: बिहार शोध  संवाद  और बागमती बचाओ  अभियान  की अगुआई में चल  रहा  बागमती आन्दोलन  सफलता की ओर बढ़ रहा  है. गाँव-गाँव में सभाएं हो रही हैं। बाँध निर्माण में लगे ट्रैक्टरों को जगह-जगह रोका जा रहा है. हस्ताक्षर अभियान में तेजी आ रही है. अब तक एक हजार से ज्यादा लोग सत्याग्रही प्रपत्र पर हस्ताक्षर कर जेल जाने का संकल्प ले चुके हैं. लोगों का कहना है कि यह आन्दोलन तबतक जारी रहेगा, जब तक कि सरकार बाँध निर्माण को वैज्ञानिक तरीके से स्थगित करने  की सार्वजनिक घोषणा नहीं करती है. बागमती आन्दोलन को धार देने में दिन-रात जुटे सामाजिक कार्यकर्ता व पर्यावरणविद अनिल प्रकाश ने कहा कि हमने सरकार से मांग की है कि तत्काल बाँध का निर्माण वैज्ञानिक तरीके से रोका जाये, नहीं तो बागमती के हजारों लोग फोरलेन जाम करने पर मजबूर होंगे. 

इन जगहों पर रोके गए ट्रैक्टर : 
24 अप्रैल 2012 : गायघाट प्रखंड के कल्याणी में सत्याग्रही महिलाओं ने करीब 40 ट्रैक्टरों को रोक लिया, जो मिटटी से लदे थे. 5 ट्रैक्टरों को जब्त कर 25 अप्रैल को छोड़ा गया।
26  अप्रैल 1012 :  कटरा प्रखंड के भवानीपुर गाँव में भी 30-35 ट्रैक्टरों को आन्दोलनकारियों ने काम करने से रोक दिया.
28 अप्रैल 2012 : गायघाट के पिरौंछा, मिश्रौली व केवटसा गाँव में भी ट्रैक्टरों को रोका गया.
30 अप्रैल 2012 : मिश्रौली में 5 ट्रैक्टरों को जब्त किया गया. बाद में इस शर्त पर छोड़ा गया कि वे फिर काम पर नहीं लगेंगे.
1 मई 2012 : नवादा में भी ट्रैक्टरों को रोका गया.
3 मई 2012 : कल्याणी में 5 ट्रैक्टरों को जब्त किया गया. बाद में छोड़ा गया. गंगिया में काम को रोका गया.

विश्व बैंक का खेल  हो बंद : 
आन्दोलन में लगे अनिल प्रकाश के अलावे महेश्वर प्रसाद यादव, वीरेंद्र राय, डॉ. हरेन्द्र कुमार, डॉ. कुमार गणेश समेत सैकड़ों आन्दोलनकारियों ने एक स्वर में सरकार से कहा है कि बाँध निर्माण में शासन व विश्व बैंक के बीच हो रहे खेल को बंद किया जाये. यह खेल बागमती की जनता भी बखूबी जान रही है.

समर्थन समिति का गठन : 2 मई को पटना में बिहार शोध संवाद की एक बैठक रामचंद्र खान की अध्यक्षता में हुई,इसमें श्री खान की अगुवाई में एक समर्थन समिति का गठन किया गया. बैठक में सुनीता त्रिपाठी, रंजीव आदि मौजूद थे.