संबोधित करते नदी विशेषज्ञ डॉ. डीके मिश्र. साथ में अनिल प्रकाश. |
मौका था बिहार शोध संवाद की प्रेरणा से तटबंधरहित, विस्थापंमुक्त बागमती बचाओ अभियान के सम्मलेन का. बिहार शोध संवाद के संस्थापक अनिल प्रकाश और अभियान के संयोजक महेश्वर प्रसाद यादव ने आन्दोलन को अंजाम तक पहुँचाने का बीड़ा उठाया. सम्मेलन को नदी विशेषज्ञ डॉ. दिनेश कुमार मिश्र, प्रयावरणविद अनिल प्रकाश, रंजीव, शशि शेखर, वीरेंदर राय, चन्द्र कान्त मिश्र, गंगा प्रसाद, लछनदेव प्रसाद सिंह, डॉ. हेम नारायण विश्वकर्मा, भारती, शिवनाथ पासवान, उदय शंकर सिंह, रामबृक्ष सहनी आदि ने संबोधित किया. मौके पर अप्पन समाचार की रिंकू कुमारी, खुशबू कुमारी, अमृतांज इन्दीवर समेत हजारों लोग उपस्थित थे.
अनिल प्रकाश, संस्थापक, बिहार शोध संवाद कहते हैं :
बागमती पर बांध गैर जरूरी व अवैज्ञानिक है. हमें नदी के साथ रहने की आदत है. बांध की कोइ जरूरत नहीं है. हमारी लडाई अब मुआवजे की नहीं, बल्कि बागमती बांध को रोकने की होगी. गाँव-गाँव में बैठक कर सत्याग्रहियों को भर्ती किया जायेगा. सेन्ट्रल कमिटी का गठन कर उसके निर्णय के अनुसार आगे की रणनीति तय की जाएगी.
डॉ. दिनेश कुमार मिश्र, नदी व बाढ़ विशेषज्ञ कहते हैं :
तटबंध बांध कर नदियों को नियंत्रित करने के बदले सरकार इसके पानी को निर्बाध रूप से निकासी की व्यवस्था करे. तटबंध पानी की निकासी को प्रभावित करता है. टूटने पर जान-माल की व्यापक क्षति होती है. सीतामढ़ी जिले में बागमती पर सबसे पहला तटबंध बनने से मसहा आलम गाँव प्रभावित हुआ था. उस गाँव के ४०० परिवारों को अब तक पुनर्वास का लाभ नहीं मिला है और रुन्नीसैदपुर से शिवनगर तक के १६०० परिवार पुनर्वास के लाभ के लिए भटक रहे हैं. दोनों तटबंधों के बीच गाद भरने की भी एक बड़ी समस्या है. रक्सिया में तटबंध के बीच एक १६ फीट ऊंचा टीला था. पिछले वर्ष मैंने देखा था, यह बालू में दबकर मात्र तीन फीट बचा है. बागमती नदी बार-बार अपनी धारा बदलती है.
रंजीव, नदी के जानकार कहते हैं : बांध विनाशकारी है. नदियों को खुला छोड़ देना चाहिए. नदियों की पेटी में जमे गाद को निकालने की व्यवस्था हो.अनिल प्रकाश, संस्थापक, बिहार शोध संवाद कहते हैं :
बागमती पर बांध गैर जरूरी व अवैज्ञानिक है. हमें नदी के साथ रहने की आदत है. बांध की कोइ जरूरत नहीं है. हमारी लडाई अब मुआवजे की नहीं, बल्कि बागमती बांध को रोकने की होगी. गाँव-गाँव में बैठक कर सत्याग्रहियों को भर्ती किया जायेगा. सेन्ट्रल कमिटी का गठन कर उसके निर्णय के अनुसार आगे की रणनीति तय की जाएगी.
डॉ. दिनेश कुमार मिश्र, नदी व बाढ़ विशेषज्ञ कहते हैं :
तटबंध बांध कर नदियों को नियंत्रित करने के बदले सरकार इसके पानी को निर्बाध रूप से निकासी की व्यवस्था करे. तटबंध पानी की निकासी को प्रभावित करता है. टूटने पर जान-माल की व्यापक क्षति होती है. सीतामढ़ी जिले में बागमती पर सबसे पहला तटबंध बनने से मसहा आलम गाँव प्रभावित हुआ था. उस गाँव के ४०० परिवारों को अब तक पुनर्वास का लाभ नहीं मिला है और रुन्नीसैदपुर से शिवनगर तक के १६०० परिवार पुनर्वास के लाभ के लिए भटक रहे हैं. दोनों तटबंधों के बीच गाद भरने की भी एक बड़ी समस्या है. रक्सिया में तटबंध के बीच एक १६ फीट ऊंचा टीला था. पिछले वर्ष मैंने देखा था, यह बालू में दबकर मात्र तीन फीट बचा है. बागमती नदी बार-बार अपनी धारा बदलती है.
जनता बोली :
सूरत लाल यादव, भगवतपुर, गायघाट कहते हैं : जमीन, घर-द्वार सब कुछ चला जायेगा. बाढ़ से नुकसान से ज्यादा लाभ होता है. दो-चार-दस दिन के कष्ट के बाद तो सब कुछ अच्छा ही होता है. जमीन उपजाऊ हो जाती है. पैदावार अधिक हो जाता है.
रौदी पंडित, बंसघत्ता कहते हैं : बांध बनने से बांध के बाहर की जमीन का दर दो लाख प्रति कट्ठा हो गया है, जबकि भीतर की जमीन १५ हजार रूपये प्रति कट्ठा हो गया है.
रंजन कुमार सिंह, गंगिया, कटरा कहते हैं : अभी हमलोग जमींदार हैं. कल कंगाल हो जायेंगे. बांध के भीतर मेरा १० एकड़ जमीन आ जायेगा. बर्बाद हो जायेंगे.
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