शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

बिहार को बहुत मंहगा पड़ेगा नदी जोड़


लगता है कि तटबंध निर्माण की सजा भुगत रहा बिहार अपनी गलतियों से कुछ सीखने को तैयार नहीं है। ताजा परिदृश्य पूर्णतया विरोधाभासी है। नीतीश सरकार ने एक ओर आहर-पाइन की परंपरागत सिंचाई प्रणाली के पुनरुद्धार का एक अच्छा काम हाथ में लिया है, तो दूसरी ओर नदी जोड़ को आगे बढ़ाने का निर्णय कर वह बिगाड़ की राह पर भी चल निकली है। प्रदेश के जलसंसाधन मंत्री का दावा है कि नदी जोड़ की इन परियोजनाओं के जरिए नदी के पानी में अचानक बहाव बढ़ जाने पर सामान्य से अधिक पानी को दूसरी नदी में भेजकर समस्या से निजात पाया जा सकेगा। वह भूल गए है कि तटबंधों को बनाते वक्त भी इंजीनियरों ने हमारे राजनेताओं को इसी तरह आश्वस्त किया था। उसका खामियाजा बिहार आज तक भुगत रहा है। जैसे-जैसे तटबंधों की लंबाई बढ़ी, वैसे-वैसे बिहार में बाढ़ का क्षेत्र और उससे होने वाली बर्बादी भी बढ़ती गई। बर्बादी के इस दौर ने बिहार में सिंचाई की शानदार आहर-पइन प्रणाली का मजबूत तंत्र भी ध्वस्त किया। परिणाम हम सभी ने देखे। आगे चलकर जलजमाव, रिसाव, बंजर भूमि, कर्ज, मंहगी सिंचाई और घटती उत्पादकता के रूप में नदी जोड़ का खामियाजा भी बिहार भुगतेगा।


आगे बढ़ाये चार प्रस्ताव


उल्लेखनीय है कि राज्य ने निर्णय ले लिया है। राज्य के जलसंसाधन विभाग में इसके लिए विशेषज्ञों की एक टीम भी गठित कर दी गई है। टीम ने प्रथम चरण में 790 करोड़ की लागत के चार परियोजनाओं पर काम करने का प्रस्ताव किया है। राज्य के जलसंसाधन मंत्री ने होशियारी दिखाते हुए राष्ट्रपति चुनाव से पहले केंद्रीय जलसंसाधन मंत्री से इन पर बात भी कर ली है। फिलहाल इन प्रस्तावों को लेकर बिहार सरकार को योजना आयोग की मंजूरी का इंतजार है। इन चार प्रस्तावों के नाम, जल स्थानान्तरण क्षमता और लागत निम्नानुसार है: 

1. बूढ़ी गंडक-नून-बाया-गंगा लिंक
300 क्यूमेक और 407.33 करोड़।

2. कोहरा-चंद्रावत लिंक
( बूढ़ी गंडक का पानी गंडक में) 
80 क्यूमेक और 168.86 करोड़।

3. बागमती-बूढ़ी गंडक लिंक
( बागमती-बूढ़ी गंडक का पानी बेलवाधार में) 
500 क्यूमेक और 125.96 करोड़।

4. कोसी-गंगा लिंक
88.93 करोड़


सेम बढ़ेगा-उत्पादकता घटेगी


समझने की जरूरत है कि नदी जोड़ के नुकसान क्या हैं? बात एकदम सीधी सी है; पर न मालूम क्यों हमारे कर्णधारों को समझ नहीं आ रही। हम सभी जानते हैं कि नदी जोड़ परियोजना नहरों पर आधारित है। बिहार का गंगा घाटी क्षेत्र का ढाल सपाट है। नहरें वर्षा के प्रवाह के मार्ग में रोड़ अटकायेंगी ही। इससे बड़े पैमाने पर सेम की समस्या सामने आयेगी। सेम यानी जलजमाव। सेम से जमीनें बंजर होंगी और उत्पादकता घटेगी। इसके अलावा नहरों में स्रोत से खेत तक पहुंचने में 50 से 70 फीसदी तक होने वाले रिसाव के आंकड़े पानी की बर्बादी बढ़ायेंगे। समस्या को बद से बदतर बनायेंगे। गंगा घाटी की बलुआही मिट्टी इस काम को और आसान बनायेगी। बिहार के नदी व नहरी क्षेत्र के अनुभवों से इसे सहज ही समझा जा सकता है।


नहर टूटने के खतरे


बिहार में नहरों और तटबंधों के टूटने की घटनायें आम हैं। तिरहुत, सारण, सोन, पूर्वी कोसी। बरसात में बाढ़ आयेगी ही और हर साल नहरें टूटेंगी ही। नहरों का जितना जाल फैलेगा, समस्या उतनी विकराल होगी।


बहुत मंहगा पड़ेगा नदी जोड़


बाढ़ में अतिरिक्त पानी को लेकर समझने की बात यह है कि उत्तर बिहार से होकर जितना पानी गुजरता है, उसमें मात्र 19 प्रतिशत ही स्थानीय बारिश का परिणाम होता है। शेष 81 प्रतिशत भारत के दूसरे राज्यों तथा नेपाल से आता है। गंगा में बहने वाले कुल पानी का मात्र तीन प्रतिशत ही बिहार में बरसी बारिश का होता है। अतः ब्रह्मपुत्र-गंगा घाटी क्षेत्र में नदी जोड़ का मतलब है नेपाल में बांध। उसके बगैर पानी की मात्रा नियंत्रित नहीं की जा सकती। बांधों को लेकर दूसरे सौ बवाल है, सो अलग; इधर नेपाल ने प्रस्तावित बांधों से होने वाली सिंचाई से धनवसूली की मंशा पहले ही जाहिर कर दी है। लालू यादव ने मई, 2003 में कहा ही था- “पानी हमरा पेट्रोल है।” इस नजरिए से बहुत मंहगी पड़ेगी नदी जोड़ के रास्ते आई सिंचाई। यूं भी नदी जोड़ की प्रस्तावित लागत आगे और बढ़ने ही वाली है। इसके क्रियान्वयन में निजी कंपनियों का प्रवेश भी होगा ही। वे आये दिन किसानों की जेब खाली कराने से कभी नहीं चूकेंगी। सस्ता नहीं सौदा नदी जोड़ का।


बाढ़ के साथ जीने का उपायों की जरूरत

बिहार की बाढ़ को लेकर चर्चा कोई पहली बार नहीं है। यह कई बार कहा जा चुका है कि बाढ़ को पूरी तरह नियंत्रित करना न संभव है और न किया जाना चाहिए। बाढ़ के अपने फायदे हैं और अपने नुकसान। जरूरत है, तो सिर्फ बाढ़ प्रवाह की तीव्रता को कम करने वाले उपायों की। नदियों में बढ़ती गाद को नियंत्रित करने की। तटबंधो पर पुनर्विचार करने की। बिहार की बाढ़ का ज्यादातर पानी नेपाल की देन है। मध्यमार्गी होकर उसका रास्ता नेपाल से बात करके ही निकाला जा सकता है। लेकिन हमारी नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में जलसंचयन ढांचे व सघन वनों की समृद्धि तथा जलप्रवाह मार्ग को बाधामुक्त करने जैसे उपायों से कम से कम वर्षाजल के जरिए आने वाले अतिरिक्त जल को धरती के पेट में बैठाया ही जा सकता है। 

साथ ही जरूरत है कि बाढ़ क्षेत्रों में ऐसे उपाय करने की, ताकि लोग बाढ़ के साथ जी सकें। बाढ़ क्षेत्रों के लिए मार्च अंत में बोकर बारिश आते-आते काट ली जाने वाली धान की किस्में उपलब्ध हैं। खरीफ फसलों पर और काम करने की जरूरत है। बाढ़ क्षेत्रों में रबी के भी अच्छे प्रयोग हुए हैं। उन्हें लोगों तक पहुंचाने के लिए वित्तीय प्रावधान, ईमानदारी व इच्छाशक्ति चाहिए। बाढ़रोधी घर, पेयजल के लिए ऊंचे हैंडपम्प, शौच-स्वच्छता का समुचित प्रबंध तथा पशुओं के लिए चारा-औषधियां। छोटे बच्चों के इलाज का खास इंतजाम व एहतियात की। जरूरत है कि बाढ़ के समय के साथ-साथ हम अपने कामकाज के वार्षिक कैलेंडर को बदलें। डाकघर-दवाखाना-बैंक-एटीएम-बाजार आदि जैसी रोजमर्रा की जरूरतों की मोबाइल व्यवस्था करें। सुंदरवन में यूनाइटेड बैंक नौका शाखा के जरिए अपनी सेवायें देता है।

आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है। सोच बदले, तो दिशा बदले। बिहार में यदि सचमुच सुशासन है, तो वह इसी का परिणाम है। जरूरत है बिहार के इंजीनियर मुख्यमंत्री को बिहार की बाढ़ पर ठेकेदार प्रस्तावित परियोजनाओं की सोच से उबरने की। क्या वह उबरेंगे? फिलहाल प्रस्तावित चार परियोजनाओं का संकेत ठीक इसके विपरीत है। आप क्या सोचते हैं? अपनी आवाज बिहार सरकार तक पहुंचायें। हमे इंतजार रहेगा। हो सकता है कि सरकार चेत जाये तथा बिहार एक और नुकसानदेह परियोजना का खामियाजा भुगतने से बच जाये।

मंगलवार, 7 अगस्त 2012

जनता की पंचायत

मीरा सहनी और खुशबू कुमारी को बलात्काकरियों ने मार डाला


9 अगस्‍त 2012 – 11 बजे दिन से गायघाट प्रखंड मुख्‍यालय के निकट

भाइयों एवं बहनों,
19 मई 2012 की रात में धनौर गांव, थाना कटरा, जिला मुजफ्फरपुर की स्‍वयं सहायता समूह की संयोजिका मीरा सहनी को फोन पर बताया गया कि उसका बेटा, जो यज्ञ देखने गया था, एक बगीचे में बेहोश पड़ा है। वह दौड़ी हुई सुनसान बगीचे की ओर पहुंची। पहले से घात लगाये उसी गांव के दुष्‍कर्मी उसे पकड़कर चौर में ले गये। जहां लगभग एक दर्जन सफेदपोश लफंगों ने उसके साथ जबर्दस्‍ती की और विरोध करने पर मार-मार कर बेहोश कर दिया। उसके पूरे शरीर को दांतों से नोचा-खसोटा गया। मरणासन्‍न हालत में उसे गांव में लाकर फेंकने ही वाले थे कि लोगों ने देख लिया। हल्‍ला होने पर दुष्‍कर्मी भाग गये।
   गांव वालों ने उसे कटरा अस्‍पताल पहुंचाया। थोड़ी देर बाद उसे रेफर करके अस्‍पताल के एम्‍बुलेंस से श्रीकृष्‍ण मेडिकल कॉलेज, मुजफ्फरपुर भेज दिया गया। कटरा अस्‍पताल के डॉ. अनिल सिंह ने पुलिस को सूचना देना तक उचित नहीं समझा जो कि उनकी कानूनी जिम्‍मेवारी थी। मुजफ्फरपुर मेडिकल कॉलेज में मीरा 20 मई 2012 को 11 बजे दिन तक थी। वहां से उसे रेफर करके पटना मेडिकल कॉलेज भेज दिया गया। दुष्‍कर्मियों के समर्थकों ने डॉक्‍टरों एवं अधिकारियों को भी मिला लिया था, इसलिए उन्‍होंने पुलिस को सूचित नहीं करवाया। 20 मई की शाम 4 बजे मीरा की बहन और बहनोई ने उसे पटना मेडिकल कॉलेज में भर्ती करवाया। वहां 23 मई की रात 8.30 बजे उसकी मृत्‍यु हो गई। बलात्‍कारियों- हत्‍यारों के हाथ इतने लंबे हैं कि पटना मेडिकल कॉलेज के अधिकारियों ने भी पुलिस को सूचित नहीं किया और बिना पोस्‍टमार्टम के लाश को अस्‍पताल से बाहर करने की कोशिश करने लगे। मीरा के परिजनों के विरोध के कारण 24 मई की सुबह तक लाश वहीं पर पड़ी रही। इस बीच मीरा का पति कलकत्‍ता से आ गया था। उसने कुछ सामाजिक व राजनीतिक कार्यकर्ताओं को फोन करके मदद की गुहार लगाई। पत्रकारों, महिला संगठनों को पता चला। अंतत: सेवानिवृत्‍त डीजीपी रामचन्‍द्र खान के हस्‍तक्षेप के बाद पटना के पीरबहोर थाना के थानाध्‍यक्ष ने पीएमसीएच पहुंच कर एफआईआर दर्ज किया। उसके बाद पोस्‍टमार्टम हो सका।
   अभी वेजाइनल विसरा की फॉरेंसिक जांच की रिपोर्ट आई भी नहीं, लेकिन अखबारों में छपवा दिया गया कि मीरा के साथ बलात्‍कार हुआ ही नहीं था। धनौर गांव के सभी जातियों के अधिकांश लोग बताते हैं कि मीरा के साथ अत्‍याचार हुआ है और इस घटना में लिप्‍त सफेदपोश अपराधी अपनी जाति की गरीब लड़कियों के साथ भी छेड़खानी और जबर्दस्‍ती करने से बाज नहीं आते। घटना के लगभग ढाई महीने से ज्‍यादा बीतने के बावजूद इस कांड में लिप्‍त अपराधी छुट्टा घूम रहे हैं। उनको अपने राजनीतिक आकाओं का संरक्षण प्राप्‍त है। मीरा के पति छोटे सहनी को धन का प्रलोभन और धमकी देकर चुप कराने की असफल कोशिश हुई है।
  यही कारण है कि इलाके भर के दुष्‍कर्मियों का मन बढ़ गया। 12 जुलाई 2012 की रात 7-8 बजे कोपी गांव की 9वीं क्‍लास की 14 वर्षीय छात्रा खुशबू कुमार (पिता रविंद्र सिंह) शौच के लिए नदी किनारे गई थी। वहीं दुष्‍कर्मियों ने उसे दबोच लिया। उसके साथ दुष्‍कर्म किया और बात छिपाने के लिए उसे भी जान से मार डाला।
  मीरा सहनी बलात्‍कार हत्‍याकांड के अपराधी के भतीजे खुशबू के बलात्‍कार-हत्‍या में शामिल थे। ये कुकर्मी खुशबू की ही जाति के थे। पुलिस प्रशासन की ढिलाई के परिणामस्‍वरूप इस केस में एक कुकर्मी की गिरफ्तारी तो हुई लेकिन अन्‍य सभी छुट्टा घूम रहे हैं। 26 जुलाई 2012 की रात में कुकर्मियों ने इस मामले के गवाहों को बुरी तरह पीटा।
   इस इलाके में इस प्रकार की घटनाएं घटती रहती हैं। दुष्‍कर्मी गरीब और कमजोर लड़कियों और महिलाओं के साथ बदमाशी करने से भी बाज नहीं आते।
   हम और आप कब तक चुप बैठे रहेंगे। आइए इस प्रवृत्ति का विरोध कीजिए। हम सब मिलकर पुलिस, प्रशासन और सरकार पर दबाव डालें कि बलात्‍कारियों और हत्‍यारों पर सख्‍त कारवाई की जाए। हमारा समाज जगे और महिलाओं के साथ सम्‍मान व बाराबरी के व्‍यवहार की संस्‍कृति मजबूत हो। समाज की कोई लड़की या औरत असुरक्षित न रहे।
  क्‍या आप इस अत्‍याचार पर मौन साधे रहेंगे। आइए इस जुल्‍म का विरोध कीजिए। सभी जनपक्षी संगठनों, पार्टियों तथा संवेदनशील स्‍त्री-पुरुषों से अपील है कि इस सत्‍याग्रह में शामिल होकर अपना फर्ज निभाइए। गांव से आने वाले सभी साथी अपना भोजन – चूड़ा, सत्‍तू, रोटी साथ लाएं तथा अपने खर्च से आएं।
बाहर से आने वाले अतिथि -
रामचंद्र खान (पूर्व डीजीपी), अनिल प्रकाश, डॉ. कुमार गणेश, डॉ. इन्‍दु भारती, शाहिना परवीन, निभा सिन्‍हा – 9835450544, अख्‍तरी बेगम – 9430559191, कंचन बाला, अशर्फी सदा, अरविंद निषाद, सुजीत कुमार वर्मा, अशोक क्रांति (सभी पटना से), गौतम (भागलपुर से)

निवेदक
दिनेश कुमार - 9631670544, अजय कुमार, रामू, सुनील सिंह (गाय घाट), छोटे सहनीख्‍ विमल सहनी, किरण सिन्‍हा, लक्ष्‍मी, पार्वती, रिंकू, खुशबू, बेबी, अजित चौधरी, रॉबिन रंगकर्मी, जितेंद्र चौधरी, अनिल ि‍द्वेदी -9135182766, डॉ. भूषण ठाकुर, रामपुकार सहनी, रामबाबू, आनंद पटेल – 9939898304, डॉ. हेमनारायण विश्‍वकर्मा, सुनील कुमार, राजेश्‍वर साह।

महिला संघर्ष मोर्चा, अपराजिता (महिला जनप्रतिनिधि संगठन), वामा, जनमंच