- अंबरीश कुमार

अस्सी के दशक में गंगा की जमींदारी के
खिलाफ आंदोलन छेड़ने वाले संगठन गंगा मुक्ति आंदोलन के प्रमुख नेता अनिल प्रकाश इस
अभियान के संचालकों में शामिल है और इस सिलसिले में वे बिहार के बाहर के जन संगठनों
से संपर्क कर इस आंदोलन को ताकत देने की कवायद में जुटे है। अब तक इस अभियान के लिए
एक हजार सत्याग्रही तैयार हो चुके है। अनिल प्रकाश ने कहा कि बागमती नदी के तटबंध
का निर्माण नहीं रुका तो सिर्फ मुजफ्फरपुर जिले के सौ से ज्यादा गांवों में जल
प्रलय होगी और यह सिलसिला कई और जिलों तक जाएगा। बागमती नदी के तटबंध के खिलाफ
पिछले एक महीने की दौरान जो सुगबुगाहट थी अब वह आंदोलन में तब्दील होती नजर अ रही
है। खास बात यह है कि इस आंदोलन का नेतृत्व वैज्ञानिक और इंजीनियर भी संभाल रहे है। इस अभियान के समर्थन में अब एक लाख लोग हस्त्ताक्षर कर प्रधानमंत्री से दखल देने
की अपील करने जा रहे है।
अनिल प्रकाश के मुताबिक लंबे अध्ययन और बैठको के बाद
१५ मार्च को मुजफ्फरपुर के कटरा प्रखंड के गंगिया स्थित रामदयालू सिंह उच्च
विद्यालय परिसर में बागमती पर बांध के निर्माण के विरोध में बिगुल फूंका गया।
हजारों की संख्या में प्रभावित परिवारों के लोगों का जमघट लगा। गायघाट, कटरा, औराई
के गाँव-गाँव से उमड़ पड़े बच्चों, बूढ़ों, नौजवानों, महिलायों और स्कूली छात्रों
की आँखों में सरकार के विरूद्ध आक्रोश झलक रहा था। इससे पहले नदी विशेषज्ञ डॉ.
डीके मिश्र, अनिल प्रकाश, अभियान के संयोजक महेश्वर प्रसाद यादव और मिसाइल और
एअर क्राफ्ट वैज्ञानिक मानस बिहारी वर्मा ने इस मुद्दे के विभिन पहलुओं का अध्ययन
किया और फिर आंदोलन की जमीन बनी।
विशेषग्य ही नहीं गाँव के
लोगभी इस सवाल पर काफी मुखर है। भागवतपुर गाँव के सूरत लाल यादवने कहा -बागमती को
बांधा तो जमीन, घर-द्वार सब कुछ चला जाएगा। बाढ़ से नुकसान से ज्यादा लाभ होता है.
दो-चार-दस दिन के कष्ट के बाद तो सब कुछ अच्छा ही होता है. जमीन उपजाऊ हो जाती है.
पैदावार अधिक हो जाता है। बन्स्घत्ता के रौदी पंडित,के मुताबिक बांध बनने से बांध
के बाहर की जमीन का दर दो लाख प्रति कट्ठा हो गया है, जबकि भीतर की जमीन १५ हजार
रूपये प्रति कट्ठा हो गया है। जबकि गंगिया के रंजन कुमार सिंह ने कहा - अभी हमलोग
जमींदार हैं. कल कंगाल हो जाएगे। बांध के भीतर मेरा १० एकड़ जमीन आ जाएगा और हम
बर्बाद हो जाएगा। रंजीव का मानना है कि बांध विनाशकारी है। नदियों को खुला छोड़
देना चाहिए। नदियों की पेटी में जमे गाद को निकालने की व्यवस्था हो।
Link- http://epaper.jansatta.com/08042012/index.html
http://ambrish-kumar.blogspot.in/2012/04/blog-post_07.html
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sir it is very serious problem for all those people who are facing such kind of problem
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