शनिवार, 27 सितंबर 2014

World Bank discuss Ganga project with river activists


गंगा की हिफाजत


‘लौटा द नदिया हमार’

  • एलएस कॉलेज में दो दिवसीय राष्‍ट्रीय सेमिनार का समापन
  • गंगा को बचाने के लिए सर्वसम्मिति से मुजफ्फरपुर सहमति पारित


मुजफ्फरपुर। एलएस कॉलेज में दो दिवसीय राष्‍ट्रीय सेमिनार संरक्षण एवं चुनौतियां के आखिरी दिन शुक्रवार को मुजफ्फरपुर सहमति को पारित किया गया। इसके अनुसार हमारे लिए गंगा की हिफाजत का मतलब हैगंगोत्री से बंगाल की खाड़ी तक पूरी जिन्दगी की हिफाजत। विकास की सोच पर पुर्नविचार की जरुरत महसूस करते हैंजो अपनी मूल प्रवृति में विध्वंसात्मक और गैर लोकतांत्रिक है। लौटा द नदिया हमार


डॉ. कैसर शमीम ने कहा कि गंगा का मतलब जिंदगी है। गंगा की हिफाजत का मतलब है, गंगोत्री से बंगाल तक पूरे इलाके की जिंदगी, हर नदी,पोखर की हिफाजत। यह खुशकिश्‍मती है कि तिरहुत की नदियां गंगा में साफ पानी डाल रही हैं। ऐसा अन्‍य जगह देखने को नहीं मिलता है। सामाजिक सरोकार और विज्ञान के साथ काम करेंगे तभी गंगा को बचाने की अहमियत का पता चलेगा। गंगा को बचाने की मुहीम में सिर्फ सरकारी मुहीम की चर्चा हो रही है। अभी तक इस मसले पर केंद्र सरकार का मिजाज साफ नहीं है। लेकिन जो भी जानकारी बाहर आई है, वह किसान, नदी और पर्यावरण के लिए ठीक नहीं है। इसके अनुसार मछली पकड़ने पर रोक और स्‍मार्ट सिटी बनाने की योजना है। यहां अजीब सरकारी सोच है जिसे लगता है कि टूरिस्‍ट के घूमने व प्रदूषण फैलाने से गंगा को नुकसान नहीं होगा और मछली पकड़ने से नुकसान हो जाएगा। डॉ. शमीम ने कहा कि सामाजिक सरोकार की सोच से ही गंगा को बचाया जा सकता है। उन्‍होंने कहा कि इस सामाजिक मुहीम में स्‍थानीय बोली और भाषा महत्‍वपूर्ण है। अपनी बोली में आंदोलन होगा तो लोगों को अपनापन का एहसास होगा। उनके पास स्‍थानीय बोली में ज्ञान का भंडार है। यह गंगा को बचाने में काम आ सकेगी।


डॉ. रीना ने कहा कि गंगा पर बांध बनाकर इसकी गति को रोकना बड़ा अपराध है। उन्‍होंने कहा कि पहली बार गंगा पर ब्रिटिश सरकार ने हरिद्वार के पास बांध बनाने की कोशिश की थी। उस वक्‍त वर्ष 1916 में महामना मदन मोहन मालवीय ने विरोध किया और तब अंग्रेज सरकार ने समझौता किया कि गंगा पर डैम नहीं बनेंगे। अब ऐसे ही कदम की जरूरत है। उन्‍होंने गंगा को धार्मिक आस्था के आधार पर गंगा पर न बांधने की अपील की। उन्‍होंने कहा कि गंगा राजनीति से अलग जनकल्‍याण के लिए जरूरी है। यह ऐसा नाम है जिसे स्‍मरण से ही तनमन ही नहीं आत्‍मा भी पवित्र हो जाती है। उन्‍होंने सुझाव दिया कि गंदे जल को गंगा में न मिलाकर इसका उपयोग सिंचाई में किया जा सकता है।

एलएस कॉलेज में इतिहास के प्राध्‍यापक डॉ. अशोक अंशुमन ने ब्रिटिश राज के समय पानी को लेकर हुए आंदोलन और इसके प्रभाव से बदले गए कानूनों पर चर्चा की। इससे लोगों को पानी और मछलियों पर अधिकार मिला।

कॉमर्स कॉलेज, पटना के प्रो. सफदर ईमाम कादरी ने कहा कि गंगा को लेकर केंद्र सरकार का विचार भ्रमक है। ऐसा इसलिए कि एक तरफ इसे धर्म की ईकाई बताया जा रहा है तो दूसरी तरफ आर्थिक मामला। उन्‍होंने कहा कि गंगा की सफाई की योजना बनाने से पहले पुराने गंगा एक्‍शन प्‍लान की समीक्षा जरूरी है। उस योजना में कई हजार करोड़ रुपए खर्च किए गए। पता लगाना चाहिए कि आखिर कहां-कहां गड़बड़ी हुई। अब सरकार पुरानी बात भूलकर एक बार फिर से नई भूल करने जा रही है। प्रो. कादरी ने कहा कि गंगा पर बहूस्‍तरीय नीति बनाने की जरूरत है। गंगा की मुक्ति के लिए जाति-संप्रदाय से ऊपर उठकर बोलना होगा, क्‍योंकि गंगा सबकी है।

पानी आंदोलन में जुटे सामाजिक कार्यकर्ता अफसर जाफरी ने बताया कि गंगा की सफाई और इसपर बराज बनाने की योजना के पीछे जल के निजीकरण की छिपी हुई योजना है। चुपके-चुपके दिल्‍ली (साउथ दिल्‍ली), नागपुर, मुम्‍बई, मैसूर, खंडवा और बैंग्‍लोर में पानी का निजीकरण किया जा चुका है। उन्‍होंने बताया कि दिल्‍ली में टिहरी से स्‍पेशल नहर से पानी आता है और इसे निजी कंपनी साउथ दिल्‍ली में सप्‍लाई करती है। उन्‍होंने अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि यहां पानी इतना महंगा है कि एक साल में वह 11 हजार रुपया बिल जमा कर चुके हैं। उन्‍होंने बताया कि केंद्र सरकार से जो सूचनाएं बाहर आईं हैं उसके मुताबिक करीब 40 बराज बनाने की बात चल रही है। ऐसा करके पानी को निजी कंपनियां के मार्फत बेचने की योजना है।उन्‍होंने कहा कि डब्‍ल्‍यूटीओ पानी के निजीकरण की कोशिश कर रहा है। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के नाम पर स्‍वेज, टेम्‍स वाटर जैसी बड़ी कंपनियां इस इंतजार में हैं कि जल्‍द से जल्‍द उन्‍हें पानी के बड़े पैमाने पर बिक्री का अधिकार मिले।

सामाजिक विचारक किशन कालजयी ने कहा कि गंगा समेत पकृति के साथ लगातार बदसलूकी की जा रही है, ऐसे प्रकृति का पलटवार कभी जम्‍मू-कश्‍मीर तो कभी उत्‍तराखंड की जल त्रासदी के रूप में सामने आता है। इसके बावजूद हम ठीक से नहीं बना रहे हैं। उन्‍होंने कहा कि भारत में भौगोलिक विविधता है और यहां के स्‍थानीय मुद्दों को ध्‍यान में रखकर सरकार को योजना बनाना चाहिए।
उन्‍होंने कहा कि गंगा की सफाई पर कुल 29 हजार करोड़ खर्च हो चुके हैं। इस पर श्‍वेत पत्र जारी होना चाहिए। जनता को यह हक होना चाहिए, हमारे पैसे को कैसे खर्च किया गया है।


दूसरे सत्र में हिमालयन इकोलॉजिस्‍ट जयंत बंधेपाध्याय ने स्‍काइप पर वीडियो चैट के माध्‍यम से अपना विचार रखा। उन्‍होंने कहा कि प्रकृति के नब्ज को बिना समझे प्रोजेक्ट बनाने से हम लगातार संकट में जा रहे हैं।
डॉ. डीके मिश्रा ने फोन पर अपना व्‍याख्‍यान दिया। उन्‍होंने कहा कि नदियों पर जितने ज्‍यादा बराज बनेंगे, उतना ही ज्‍यादा नदी में बालू जमा होगा। यह खतरनाक स्थिति होगी। बराज बनाकर जहाज चलाने से गंगा गंगा न रह जायेगी।

वरिष्‍ठ पत्रकार संतोष भारतीय ने स्‍काइप वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्‍यम से कहा कि गंगा मुक्ति में लगे हुए लोग और यमुना को जिन्दा रखने के आंदोलन को जोड़ना यह भी एक बड़ा आंदोलन है। सैडेड संस्‍था के संयोजक विजय प्रताप ने आम जनता के समझने के वैचारिक व आंदोलनात्‍मक संघर्ष को मुजफ्फरपुर सहमति’ पत्र से जोड़ने की बात कही। एलएस कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अमरेंद्र नारायण यादव ने कहा राष्‍ट्रीय सेमिनार गंगा बेसीन : संरक्षण एवं चुनौतियां से समाज में एक चेतना फैलाने का भी प्रयास हुआ है। सामाजिक कार्यकर्ता अनिल प्रकाश ने समापन समारोह के दौरान मुजफ्फरपुर सहमति को पेश किया। इस पर सर्वसम्‍मति से सहमति बनी। कार्यक्रम में गंगा बेसीन के संरक्षण और चुनौतियों पर पेंटिंग बनाने वाली छात्राओं को सम्‍मानित किया गया। कार्यक्रम के समापन समारोह की अध्‍यक्षता पूर्व डीजीपी रामचंद्र खान ने की। वक्‍ताओं में प्रो. नित्‍यानंद शर्मा आदि शामिल थे।

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मुजफ्फरपुर सहमति - लौटा द नदिया हमार

1. 25 और 26 सितमम्बर 2014 को मुजफ्फरपुर में हुए गंगा समाज के प्रतिनिधियोंविचारकोंलेखकों,  कलाकर्मियोंवैज्ञानिकोंजनपक्षी अभियंताओंसमाज वैज्ञानिकोंसांस्कृतिक कर्मियोंनदी आंदोलन से जुड़े लोगों एवं नदी के साथ गलत छेड़-छाड़ के कारण पीडि़त लोगों और विशेषज्ञों का यह समागमहमारी उन चिन्ताओं का प्रतीक हैजो हमारे पूरे क्षेत्रा की जैव-विविध्ता (बायोडाइवर्सिटी) के बारे में हमारे मन में है। हम अपनी इस चिन्ता में नेपाल और बांग्लादेश के लोगों को भी अपना साथी मानते हैं। जो गंगा की ताबाही से मुतासिर हो रहे हैं।
2. जब हम गंगा बेसिन की बात करते हैं तो हम उन तमाम नदियों और जलाशयों की भी बात करते हैंजिनका प्रदुषित पानी गंगा में पहुँचकरगंगा की अपनी सपफाई की क्षमता को भी नष्ट कर रहा है। हमारी चिन्ताओं में नदी के किनारे बेहंगम बसे शहरों एवं कल-कारखानें भी शामिल हैंजिनका अनट्रीटेड वेस्ट और जहरीला पानी गंगा को तिल-तिल मार रहा है। केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड की 2013 की रिपोर्ट कहती है, गंगा के किनारे बसे शहरों के जरिए 2723 मिलीयन लीटर कचरा और सीवर की गलाजत रोजाना गंगा में डाली जा रही हैये सरकारी आँकड़ा है। असल में तो इससे कई ज्यादा गलाजत हमारी उन दरियाओं में डाला जा रहा हैजिनका पानी गंगा में गिरता है। खुद केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड ने पाया है कि 6000 मिलीयन लीटर गंदा पानी रोजाना गंगा में डाला जा रहा है।
3. हमारे लिए गंगा की हिफाजत का मतलब हैगंगोत्री से बंगाल की खाड़ी तक पूरी जिन्दगी की हिफाजत। उसके जलवायु की हिफाजतजमीन का बचावखेती और हरियाली की हिफाजतजानवरों और पौधें का बचाव और वो सब कुछ जो इस क्षेत्र की जिन्दगी को बचाये रखने के लिए जरुरी है। इन सबके बीच धरती का वो इन्सान हैंजिसके लिए इस पूरे वातावरण को बचाया जाना है यानि हमारे मछुआरेकिसानमालीबढ़ईमीर शिकार,कुम्हारधोबीसपेरे यानि गंगा के मैदान में बसी पुरी आबादी जिसका जीना- मरना गंगा के साथ है। ये वो लोग हैंजो अपनी जीविका के लिए गंगा पर आश्रित है और जो अपने सीने में सदियों के इंसानी तजुर्बे का खजाना सुरक्षित रखा हैं।
4. विज्ञान भले हीं 80 प्रतिशत जीव-जन्तुओं का नामकरण नहीं कर पाया होमगर इनकी अपनी बोली में उनका कोई न कोई नाम जरुर होता है और वो उसका ऐसा ज्ञान रखते हैं जहाँ तक विज्ञान की पहूँच नहीं हो सकी है। लेकिन उनका ये सारा ज्ञान उनकी अपनी बोलियों में है। जिसके बिना इंसानी तजूर्बे के इस बड़े खजाने को बचाया नहीं जा सकता। जब भी कोई भाषा लुप्त होती है तो उसके साथ सदियों में जमा किया गया इंसानी तजूर्बे का खजाना भी लुप्त हो जाता है। इसीलिए हम जैव-विविधता और भाषायी विविधता के आपसी रिश्ते पर जोर देते हैं और हमारा मकसद इस ध्रती की पुरी विविधता की हिफाजत है।
5. इन सबके बीच है गंगा की सफाई की सरकारी बातेंजिसका हाल अन्य सरकारी स्कीमों की तरह है। यानि पहले कैंसर पैदा करने वाले फल एवं सब्जियाँ उगाओलोगों की सेहत बरबाद करने का मुकम्मल बंदोबस्त करें और पिफर कैंसर के अस्पताल खोलों और बिमारियों का इलाज ढ़ूँढ़ो। अब तक की तबाही क्या कम थी की हमारी सरकार अब इलाहाबाद से बंगाल के खाड़ी के बीच 16 बराज बनाने की बात कर रही है। जिसका मतलब होगा,गंगा को 16 बड़े तालाबों में बदल देना। इन सबके नतीजें में जो ताबाही फैलेगी तो फिर उसका इलाज ढूंढ़ने के लिए तेजारती कंपनियाँ सामने आयेगी,जिनका मकसद सिपर्फ मुनाफा कमाना है। उनको इलाज ढूँढ़ने के जरिए भी मुनाफा कमाने का एक और मौका मिलेगा। सरकार नदी के किनारे जगह-जगह टूरिज्म के सेन्टर खोलना चाहती हैजिससे सरकार को मामूली मगर टूरिज्म से जुड़े तेजारती घरानों को अधिक लाभ होगा।
6. जलवायुजमीनआसमानपहाड़जंगलसूरज और उसकी धूप तथा उससे पैदा होनेवाली ऊर्जा जनसंपदा है। सरकार को इसके सुचालन के लिए चुना जाता है। वो इसकी मालिक कतई नहीं है। इसलिए उसे कतई ये अधिकार नहीं है कि वो जनसम्पदा को बाजार की चीज बनायें। हम इसे मुजरिमाना कार्रवाई मानते है।
7. हम गंगा से उस रागात्मक संबंध की बात करते हैंजो पुरी प्रकृति के साथ होना चाहिए ताकि यह धरती इंसान के रहने लायक रह सके और उसे सुख दे सके। इंसान और तमाम जानदार के लिए जीने का बेहतर माहौल बनाये रखना हम अपनी जिम्मेवारी समझते हैं। गंगाप्रकृति के साथ रागात्मक संबंध बनाये रखने की इस जद्दोजहद का प्रतीक है। हम पुरे विकास की सोच पर पुर्नविचार की जरुरत महसूस करते हैंजो अपनी मूल प्रवृति में विध्वंसात्मक और गैर लोकतांत्रिक है।
8. हम प्रस्तावित करना चाहेंगे कुछ उन लोगों के नाम जो इस सेमिनार के बाद मिल बैठ कर इस सहमति को सक्रिय सोच विचार और संघर्ष के रूप में परिवर्तित कर दो महीने के अंदर 26 दिसंबर 2014 को एक प्रारूप प्रस्तुत करेगी।
इस संबंध में हमारी एकजुट मांग है, ‘लौटा द नदिया हमार

गुरुवार, 25 सितंबर 2014

बराज की श्रृंखला नष्‍ट कर देगी गंगा को


  • अमेरिका में फेल हो चुकी बराज योजना को गंगा में लागू करना चाहती है सरकार
  • एलएस कॉलेज में दो दिवसीय गंगा सेमिनार शुरू

मुजफ्फरपुर। एलएस कॉलेज में गुरुवार को ‘गंगा बेसीन : संरक्षण एवं चुनौतियां’ विषय दो दिवसीय राष्‍ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन समाजवादी चिंतक सच्चिदानंद सिन्‍हा ने किया।
इस दौरान प्रसिद्ध अर्थशास्‍त्री व सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. भतर झुनझुनवाला ने कहा कि केंद्र सरकार ने गंगा पर बैराज की श्रृंखला बनाने की विध्‍वंसकारी योजना बना रही है। ताकि आयातित कोयले को बिजलीघरों तक गंगा के जल मार्ग से पहुंचाया जा सके। कुछ औद्योगिक घरानों का फायदा पहुंचाकर गंगा को नष्‍ट( करने की योजना है। इसके लिए गंगा में गहराई की जरूरत है। जबकि गंगा में कई जगह पर गहराई मात्र छह फीट है। इसलिए यहां पर 16 से 22 बराज बनाने की योजना है। लेकिन असलिय यह है कि इससे गंगा नष्‍ट हो जाएगी। उनहोंने अमेरिका की सबसे बड़ी नदी मिस्‍सीसिपी का उदाहरण देकर बताया कि वहां पर बैराज की श्रृंखला बनाने की वजह से नदी और वहां के इलाकों में तबाही आ गई है। मिस्‍सीसिपी नदी पर बराज की श्रृंखला बनाने से पहले वहां के आस-पास मिट्टी ऊंची थी। मैंग्रोव का जंगल था। जंगल खत्‍म हो गए। अमेरिकी सरकार के यूएस गवर्नमेंट एकाउंटेबलिटी ऑफिस की रिपोर्ट में कहा गया है कि बराज की श्रृंखला से नदी की जैविकता पर प्रभाव पड़ा है। इलाकों में बाढ़ आ गई।
उन्‍होंने कहा कि बराज बनने से पहले मिस्‍सीसिपी नदी बालू लेकर आती थी और समुद्र में डालती थी। समुद्र का भोजन बालू है। नदी के माध्‍यम से बालू जाने से यह भूमि का कटान नहीं करती है। वहां बैराजों में सिल्‍ट जमने लगा और पानी जंगलों में फैलने लगा। पांच हजार वर्ग किलोमीटर जमीन समुद्र में घिर चुकी है। तटिय क्षेत्र को बालू नहीं मिलने से ऐसा हुआ। नदी का तल ऊंचा होने से इसकी सहायक नदियों में भी जलस्‍तर बढ़ गया।
डॉ. झुनझुनवाला ने कहा कि अमेरिका में फेल हो चुकी व्‍यवस्था को सरकार गंगा नदी में लागू करना चाहती है। ताकि सस्‍ते में कोयला की ढुलाई हो सके। ऐसा हुआ तो गंगा 16 तालाबों में तब्‍दील हो जाएगी। उन्‍होंने कहा कि बराज से नुकसान का सबसे बड़ा उदाहरण फरक्‍का बराज है। दुनिया में सबसे ज्‍यादा सिल्‍ट चीन की पीली नदी और भारत की गंगा में उत्‍पन्‍न होता है। फरक्‍का बराज से गंगा की गति धीमी हो जाती है और उसके साथ आ रहा सिल्‍ट जम जाता है। इसके बाद जलस्‍तर ऊंचा होता है और डूब क्षेत्र बढ़ रहा है। अब ड्रेनेज से पानी निकालने की कोशिश चल रही है, ताकि नहर में पानी भेजा जा सके।
पहले गंगा बालू को समुद्र तक ले जाती थी, लेकिन फरक्‍का बराज से उसकी क्षमता का ह्रास हो गया है। सिल्‍ट न जाने से पश्चिम बंगाल में समुद्र किनारे बड़ा क्षेत्र डूबता जा रहा है। उन्‍होंने कहा कि फरक्‍का बराज से कुछ फायदा हुआ है लेकिन नुकसान बेहद ज्‍यादा है। उन्‍होंने कहा कि कठोर निर्णय लेकर फरक्‍का बराज को तोड़ देना चाहिए।
उन्‍होंने कहा कि अगर गंगा पर बराज की श्रृंखला बनी तो गंगा की सहायक नदियों में भी बराज बनाना होगा। इससे यहां की नदियां उफनाएंगी और बा़ढ का जबरदस्‍त खतरा ज्‍यादा बढ़ेगा।
उन्‍होंने कहा कि मौसम वैज्ञानिकों की रिपोर्ट है कि क्‍लाइमेट चेंज की वजह से बरसात के तीन महीने का पानी इकट्ठा अगस्‍त में ही बरसने की परंपर बढ़ेगी। ऐसे में बराज की श्रृंखला हुई तो नदी की पानी संग्रहण की क्षमता घट जाएगी और बढ़ के भयावह रूप को देखना होगा।
उन्‍होंने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को बड़े जहाज के लिए बराज बनाने की जगह इसमें छोटे जहाज से माल ढुलाई करना चाहिए। सोलर पावर की लागत कम होने वाली है, ऐसे में कोयला आधारित बिजलीघरों की जगह सोलर पावर का उपयोग बढ़ाया जाना चाहिए।
उन्‍होंने कुछ उदाहरण देकर बताया कि नदी से पानी को नहरों में भेजने के लिए इसपर बराज बनाने की आवश्‍यकता नहीं है।

समाजवादी चिंतक सच्चिदानंद सिन्हा ने कहा कि जब तक हम कचरा पैदा करने वाले विकास के रास्ते को नहीं, छोड़ेंगे, तब तक गंगा को प्रदूषण मु‍क्‍त नहीं किया जा सकता है। सारे विकास की दृष्टि को बदलने की जरुरत है। विज्ञान का इस्‍तेमाल कर प्रकृति पर नियंत्रण करने की कोशिश में हम गलत दिशा में जा रहे हैं। इससे प्रकृति का अधिक से अधिक दोहन हो रहा है और गंगा नष्‍ट हो रही है। उन्‍होंने कहा कि धार्मिक अंधता की वजह से भी गंगा प्रदूषित हो रही है।
उन्‍होंने कहा कि दिल्ली में यमुना गंदा नाला बन गया है। बड़े नगर के लिए गंगा से पानी निकाला जा रहा है। हिमालय से निकलने वाली पानी धीरे-धीरे कम हो रहा है। बड़े औद्योगिक प्रतिष्ठानों का कचरा गंगा में डाला जा रहा है।

सेमिनार के संयोजक अनिल प्रकाश ने कहा कि ढ़ाई सौ साल से विकास की अवधारणा है कि प्रकृति को दास मानकर उसका अधिकतर दोहन किया जाए। इस गलत दृष्‍ट‍िकोण की वजह से महाप्रलय का खतरा है और यह दुनिया भर के वैज्ञानिकों की सर्वमान्‍य राय है। गंगा हम जब बोलते हैं तो उससे जुड़ी सभी नदियां हैं, हिमालय और पूरा इको सिस्‍टम भी है। एक फरक्‍का बराज बना और इससे आठ राज्‍यों में हिल्‍सा जैसी कई मछलियां गंगा से गायब हो गईं। बीस लाख मछुआरों की रोजी उजर गई।
उन्‍होंने कहा कि अब गंगा को छोटे छोटे तालाबों में तब्‍दील करने, पिकनिक स्‍पॉट बनाने, रिजॉट बनाने, गंगा के किनारे स्‍मार्ट सिटी बनाने, धर्म के नाम पर अनैतिक काम करने के मंसूबे पर को सफल नहीं होने देंगे। उन्‍होंने कहा कि यह राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्‍कृतिक और सामाजिक सेमिनार है।
जिस तरह से मां का दूध बच्‍चे के लिए संसाधन नहीं होता है, वैसे ही खेत और न‍दी हमारे लिए संसाधन नहीं हो सकती है। नदियां खत्‍म करेंगे तो मानव जाति और जीव जगत पर संकट आ जाएगा।

जल आंदोलनों से जुड़े पश्चिम बंगाल के विजय सरकार कहा कि विकास के बहाने हम महाप्रलय के रास्‍ते पर चल पड़े हैं। उन्‍होंने बताया कि कोलकाता से एक साइकिल यात्रा गंगोत्री से गंगासागर तक जाएगी। इसके माध्‍यम से गंगा के आस-पास बसी जिंदगी की युक्ति भी जानेंगे और गंगा पर बन रही गलत नीतियों के बारे में जागरूक किया जाएगा।
सामाजिक कार्यकर्ता रंजीव ने कहा कि उनका मानना है कि बिहार में गंगा नहीं है। गंगा को टिहरी डैम में बांध दिया गया है। बिहार में जो गंगा दिखती है वह इसकी सहायक नदियों का पानी है। उन्‍होंने कहा कि यही मौका है विचार करने का कि हमें कैसा विकास चाहिए।
रंजीव ने कहा कि वर्ष 2000 से बिहार लगातार क्‍लाइमेट चेंज से पीडि़त हैं। लेकिन आज तक बिहार सरकार ने इसे ध्‍यान में रखकर नीतियां नहीं बनाई है। जब उत्‍तराखंड में बादल फटा तो इससे हम पीडि़त हुए। यहां गंगा का पानी कई महीने तक उल्‍टी दिशा में जाती है। टिहरी और फरक्‍का बराज से गंगा को रोक दिया गया, यह अविरल नहीं है।  
एसएस कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. भुजनंदन प्रसाद ने कहा कि राष्‍ट्रीय सेमिनार ने गंगा पर आ रही चुनौतियों पर माकूल जवाब देने के लिए बौद्धिक रूप से धनी बनाया है।
कार्यक्रम के आयोजक व एलएस कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अमरेंद्र नारायण यादव ने कहा कि अतिथियों का स्‍वागत किया। उन्‍होंने कहा कि गंगा को लेकर इस तरह का मंथन इसके रखवालों को एक दिशा देगा। प्रथम सत्र का धन्‍यवाद ज्ञापन प्रो. नित्‍यानंद शर्मा ने किया। कार्यक्रम का संचालन विजय कुमार चौधरी ने किया।

द्वितीय सत्र

भागीरथ से गंगा ने कहा था – मैं संसार की सबसे अभिशप्‍त नदी बनने जा रही हूं
दूसरे सत्र में गंगा से आस-पास बीमारी व कृषि पर चर्चा
मुजफ्फरपुर। एलएसए कॉलेज में आयोजित राष्‍ट्रीय सेमिनार के दूसरे सत्र में पूर्व डीजीपी रामचंद्र खान ने कहा कि पुराणों में गंगा के प्रदूषित होने की आशंका भी जताई गई थी। जब भागीरथ, गंगा को पृथ्‍वी पर लाने की प्रार्थना कर रहे थे, तब गंगा ने कहा था- ‘ मैं संसार की सबसे दुखी, सबसे अभिशप्‍त रखने वाली नदी बनने वाली हूं। जिस देश में तुम मुझे लेकर आए हो, उसकी सारी गंदगी मुझ में गिराई जाएगी और फिर मेरा उद्धार करने वाला कोई नहीं होगा। जब तक मैं समुद्र में जाती रहूंगी तब तक अभिशप्‍त रहूंगी।‘
रामचंद्र खान ने कहा कि अब यह सच साबित हो रहा है। गंगा लगातार प्रदूषित होती जा रही है और इसके लिए बनने वाली योजना बेहद चिंताजनक हैं।
उन्‍होंने कहा कि अमेरिका में डैम को तोड़ा जा रहा है और भारत में नया बनाने की कोशिश चल रही है। अमेरिकी उदाहरण को भी समझना चाहिए।

चिकित्‍सक डॉ. प्रगति सिंह ने कहा कि गंगा से उनका व्‍यतिगत लगाव रहा है। उन्‍होंने कहा कि हम स्‍वयं दोषी हैं गंगा को प्रदूषित करने में। आस्‍था के नाम पर फूल मालाएं, मूर्तियां व अधजले शव प्रवाहित कर देते हैं। गंगा को बचाने पर लोगों का ध्‍यान ज्‍यादा नहीं जाता है। एक संकल्‍प लेना पड़ेगा कि हमें खुद भी प्रयास करें कि गंदा न करें।
उन्‍होंने कहा कि गंगा के प्रदूषण से बहुत सी बीमारियां फैल रही हैं और इसके इलाज में खर्च बेहद ज्‍यादा हो रहा है। इसलिए गंगा का ऐसा स्‍वरूप ऐसा बनाएं कि गंगा में प्रवाहित होने वाले कचरे को दूर हो सके।
कृषि वैज्ञानिक व राजेंद्र कृषि विश्‍वविद्यालय के कुलपति डॉ. गोपाल जी त्रिवेदी ने कहा कि प्रकृति से छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए। हमें प्रकृति के साथ रहने की आदत डालना पड़ेगा। हम चाहते हैं कि प्रकृति को मुट्ठी में बंद कर दें, यह नहीं होना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि भारतवर्ष में गंगा के आस-पास सबसे ज्‍यादा उत्‍पादकता थी। यहां की खेती नदियों की मिट्टी पर होती थी। फसल इतनी अच्‍छी होती थी। नदियों को जोड़ने का बांध बनाने का या अन्‍य योजना बनाकर इसे खत्‍म किया जा रहा है।
टिहरी में बांध बना दिया है। ऐसी आशंका है कि जैसे उत्‍तराखंड और जम्‍मू कश्‍मीर में बाढ़ आ गया, वैसे बारिश हुई तो पूरा बिहार और यूपी डूब जाएगा।
कार्यक्रम में खगडि़या से आए चंद्रशेखर ने भी विचार व्‍यक्‍त किए। 

मंगलवार, 9 सितंबर 2014

नदियों से नहीं होनी चाहिए छेड़छाड़

  • 111 शहरों में चले गंगा सफाई अभियान : रामचंद्र खान
  • मुजफ्फरपुर में ‘गंगा : संरक्षण व चुनौतियां’ पर होगा सेमिनार
संवाददाता, पटना
केंद्र सरकार गंगा-सफाई अभियान को सिर्फ बनारस, इलाहबाद व पटना तक में सीमित न करे. गंगा के तट पर 111 शहर बसे हैं, वहां भी सफाई अभियान चलाये सरकार. केंद्र सरकार से इसकी मांग पूर्व आइपीएस अधिकारी रामचंद्र खान ने रविवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में की. उन्होंने कहा कि नदी सफाई को लेकर केंद्र सरकार को यूएनओ की रिपोर्ट का अध्ययन करना चाहिए. राजीव गांधी ने गंगा सफाई अभियान चलाया था, किंतु उसका नतीजा सिफर रहा. नदियों के धरातल घट गये और किनारे मिट गये. नदियों के साथ छेड़छाड़ नहीं होना चाहिए. गंगा सफाई का मामला सिर्फ इंजीनियरिंग का विषय नहीं है, बल्कि विकास का भी विषय है. गंगा मुक्ति आंदोलन के संयोजक अनिल प्रकाश व मुजफ्फरपुर लंगट सिंह कॉलेज के प्राचार्य प्रो अमरेंद्र नारायण यादव ने बताया कि गंगा व हिमालय से जुड़ी समस्याओं पर मुजफ्फरपुर में  26 व 27 सितंबर को ‘गंगा : संरक्षण व चुनौतियां ’ विषय पर दो दिवसीय सेमिनार होगा.
ेउन्होंने बताया कि सेमिनार में पत्रकार कुलदीप नैयर, अर्थशास्त्री डॉ. भरत झुनझुनवाला, पर्यावरण विशेषज्ञ  दीपक ग्यालवी, नदी विशेषज्ञ डॉ. अजय दीक्षित, बांग्लादेश की हसना जे, डॉ दिनेश कुमार मिश्र, राधा भट्ट, डॉ गोपालजी त्रिवेदी, डॉ. कैसर शमीम, डॉ महेंद्र कर्ण, डॉ. ऋतु प्रिया, सुकांत नागाजरुन, संतोष भारतीय, डॉ डीएम दीवाकर, विजय प्रताप, महादेव विद्रोही, डॉ फारूख अली, डॉ आशुतोष, अनिल चमड़िया, श्रीकांत, अरुण त्रिपाठी, अनीश रंजन, शेखर व अंबरीश कुमार शामिल होंगे.  मुजफ्फरपुर सम्मेलन में ‘लौटा दो हमें नदी हमारी’ की योजना पर भी मंथन होगा.
साभार : प्रभात खबर